मुकुंदरा हिल्स है टाइगर का प्राकृतिक आवास, यहाँ चीता का क्या काम ?

हाडोती में पैंथर और भालुओं की तादाद में निरंतर इजाफा हो रहा है जो चीता के बसने के माहौल के अनुरूप कतई नहीं है। वैसे भी जब मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व को टाइगर के लिए संरक्षित किया गया है तो चीता लाने की क्या जरूरत है। यहां तो फिलहाल टाइगर लाने की जरूरत है। टाइगर प्रेमी तथा संभागीय पर्यटन सलाहकार समिति ने अक्टूबर में मुकुंदरा में सफारी चालू करने का प्रस्ताव किया था।

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टाइगर फाइल फोटो।एएच जैदी

-ए एच जैदी-

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एएच जैदी

कोटा। चीता सबसे तेज दौड़ने वाला वन्य जीव है और लॉयन शेर की भांति समूह में रहना पसंद करता है। इन्हें घने जंगल की बजाय खुले घास के मैदान पसंद हैं जहां अपनी रपफतार से शिकार को आसानी से धर दबोचे। इसे उन वन क्षेत्रों में रहना पसंद नहीं है जहां पैंथर, लेपर्ड और हाइना जैसे वन्य जीव रहते हैं। जहां तक हाडोती का सवाल है यहां लॉयन के अलावा सभी वन्य जीव हैं। जहां तक कुनो की तरह चीते को बसाने का सवाल है तो इसे यहां लाने का कोई तुक नहीं है क्योंकि यह अन्य वन्य जीवों के साथ नहीं रहेगा। जबकि हाडोती में पैंथर और भालुओं की तादाद में निरंतर इजाफा हो रहा है जो चीता के बसने के माहौल के अनुरूप कतई नहीं है। वैसे भी जब मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व को टाइगर के लिए संरक्षित किया गया है तो चीता लाने की क्या जरूरत है। यहां तो फिलहाल टाइगर लाने की जरूरत है। टाइगर प्रेमी तथा संभागीय पर्यटन सलाहकार समिति ने अक्टूबर में मुकुंदरा में सफारी चालू करने का प्रस्ताव किया था।

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बूंदी चित्रशाला में राज दरबार में चीता के साथ व्यापारी। फोटो एएच जैदी

बून्दी चित्र शाला में चीता
उल्लेखनीय है कि सऊदी अरेबिया के रईसों ने इन वन्य जीवों को अपने महलों में पाल रखा है। जिनमंे लायन टाइगर व चीता देखे जा सकते है। रियासत काल में राजे महाराजे चीता को शिकार के लिए पालते थे। बून्दी चित्र शाला में एक चित्र में तीन चीता राज दरबार में व्यापारी बेचने के लिए लाये चित्रित है। कोटा में जंगलों में हिरन का शिकार चीते से चित्रित है।

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कोटा चित्रशाला में चीता से हिरण का शिकार का चित्र। फोटो एएच जैदी

असली चुनौती आबादी बढाने की

जहां तक मध्य प्रदेश के कुनो में चीता को अफ्रीका के नामीबिया से लाकर छोड़ तो दिया है लेकिन इसे अफ्रीकी परिस्थितियों से भारत के माहौल में ढालना कम चुनौतीपूर्ण नहीं होगा। असली चुनौती इन्हें जिंदा बनाये रखने और इनकी आबादी को भी बढाने की होगी। देखना यह रोचक होगा कि ये चीते स्वस्थ रहते हुए खुद शिकार करें। क्योंकि शुरूआत में क्वेरांटाइन बाड़े में तो इन्हें पाडे का मांस दिया जाएगा लेकिन यदि यह इसके आदी हो गए तो चिड़ियाघर में रखे जाने वाले वन्य जीव और इनमें अंतर नहीं रह जाएगा। इन्हें खुद शिकार करने की प्रवृति को बनाए रखने के लिए प्रे बेस का अच्छा खासा इंतजाम करना होगा।

सरिस्का के अनुभव को ध्यान में रखना होगा

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राजस्थान के सरिस्का के अनुभव को ध्यान में रखना होगा जहां पूर्व में टाइगर के शिकार की घटनाएं हुई हैं। कूनो का इलाका बारां और शाहबाद के निकट है। यहां की कुछ जनजातियां वन्य जीवों के शिकार के लिए पहचानी जाती हैं। वैसे भी कूनो वन्य जीवों के अवैध शिकार के मामले में डेंजर जोन में माना जाता है। चीतों को पैंथर से भी बचाना होगा जो इनके शिकार का तो सफाया कर ही देगा बल्कि मौका मिलते ही चीते को भी नहीं छोड़ेगा। झालावाड़ के इतिहासकार राज़ऋषि सिंह हाडा ने भी सोशल मीडिया पोस्ट में चीतों की सुरक्षा के बारे में चेताया है। उन्होंने उदाहरण दिया है कि सिंधिया (शिंदे ) ने ग्वालियर के जंगल के लिए जूनागढ़ नवाब से शेर (लॉयन ) मांगे थे। उन्होंने नहीं दिए तो अफ्रीका से खरीद कर शेर ग्वालियर लाए और इन शेर को जंगल में छोड़ा लेकिन, जंगल में सिंह (टाइगर ) भी थे तो दोनों में संघर्ष हो गया और अफ्रीका से लाए सभी लॉयन को टाइगर ने मार दिया। अभी जो चीते आये हैं इन्हे तेंदुओं से बचाना पड़ेगा। जिस जंगल में इन्हे छोड़ा है वहां तेंदुए (लेपर्ड ) बड़ी संख्या में हैं।

(लेखक नेचर प्रमोटर और ख्यात फोटोग्राफर हैं)

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