यूॅं न साहिल* पे खड़े हो के समन्दर देखो। देखना है तो ज़रा इसमें उतर कर देखो।।

shakoor anwar 01
शकूर अनवर

ग़ज़ल
शकूर अनवर
यूॅं न साहिल* पे खड़े हो के समन्दर देखो।
देखना है तो ज़रा इसमें उतर कर देखो।।
*
चल पड़ा हूॅं मैं मुहब्बत की कठिन राहों में।
कब यहाॅं इश्क़ की होती है मुहिम* सर देखो।।
*
पार लगना नहीं लगना तो ख़ुदा जाने है।
डूब जाते हैं शनावर* यहाँ अक्सर देखो।।
*
पहले होती थी तहफ़्फ़ुज़* के लिये शहर पनाह*।
अब तो रहज़न* हैं फ़सीलों* के बराबर देखो।।
*
हाथ आते हैं कहीं शोख़ सितमगर* यूॅं ही।
तुम ज़रा तेज़ हिरन को तो पकड़कर देखो।।
*
किसको मिलते हैं तेरे क़ुर्ब* के लम्हे* “अनवर”।
कौन बनता है मुक़द्दर का सिकन्दर देखो।।
*
साहिल* किनारा
मुहिम*अभियान
शनावर* तैराक
तहफ़्फ़ुज़*सुरक्षा हिफ़ाज़त
शहर पनाह* ऊंची दीवार परकोटा
रहजन* लुटेरा डाकू
फ़सीलाें*दीवारों
शोख़ सितम गर* चंचल प्रेमिकाएं
क़ुर्ब*सामीप्य
लम्हे* क्षण

शकूर अनवर
9460851271

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