
-पुदुक्कोटैई में, 74 सांड जख्मी, तीन खिलाड़ियों को गंभीर चोटें
-विष्णुदेव मंडल-

(स्वतंत्र पत्रकार चेन्नई)
चेन्नई। पोंगल महापर्व की आहट के साथ ही तमिलनाडु की सबसे लोकप्रिय खेल जल्लीकट्टू का शुभारंभ हो गया है। यह तमिलनाडु का सबसे पारम्परिक खेल है जिसमें युवाक सांड को काबू करने का पराक्रम दिखाते हैं।
लेकिन इस पर्व का एक स्याह पक्ष भी है जिन पर कई बार न्यायालय ने संज्ञान लेकर रोक लगाई थी, लेकिन पारंपरिक खेल और तमिल सभ्यता और संस्कृति का हवाले देकर यहां के राजनेताओं ने इस मुद्दे पर राजनीति भी जमकर की है। बैल को काबू करने के इस खेल में खतरा भी है, और संवेदना भी है। पहले बैंलों को उकसाना और फिर बैलों पीछाकर उसे काबू करने में जहाँ बैलों को जख्मी होने का खतरा बना रहता है वहीँ काबू करने वाले खिलाड़ी को भी जान की खतरा बना रहता है।
बहरहाल तमिलनाडु का यह पारम्परिक खेल से कुछ शर्तों के साथ जलीकट्टू मनाने का कानूनी अधिकार दे दिया गया है,जिसे तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में बेहद हर्षाेल्लास के साथ मनाए जाने लगा है। रविवार को पुदुक्कोटैई जिले के तचनकुरची गावं में जल्लीकट्टू का आयोजन किया गया। जिनमें 480 साडों के साथ 210 युवाओं ने बतौर प्रतियोगी हिस्सा लिया। डॉन बॉस्को युवा केंद्र और सेंट मैरी चर्च के तत्वावधान में गंधर्वकोटे स्थित एरेना मैदान मे यह खेल संपन्न हुआ। इस खेल का उद्घाटन तमिलनाडु के पर्यावरण मंत्री शिवा मयनादन और कानून मंत्री एस रघुपति ने किया। जल्लीकट्टू को लुत्फ उठाने के लिए लगभग 5000 से भी ज्यादा लोग एकत्रित हुए। इस पारम्परिक खेल में सेलम, तिरूचिरापल्ली, मदुरै, दिंढीगुल जिले के पराक्रमी युवाओं ने हिस्सा लिया।
सभी प्रतियोगी को आरटी पीसीआर कोरोना रिपोर्ट पहले से ही जमा करा लिया गया था वही सांडो कीे जांच और इलाज के लिए पशु चिकित्सक उपलब्ध थे। उन्ही प्रतियोगियों को भाग लेने का मौका मिला है जिनके कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव थे। सभी आवश्यक सावधानी रखने के बावजूद भी 74 सांडों को घायल होने की खबर है, वहीं तीन युवा गंभीर चोटिल हुए हैं।
इस खेल में अपना पराक्रम साबित करने वाले युवाओं को पुरस्कृत भी किया गया है वहीं सबसे पराक्रमी सांड मालिक को भी पुरस्कृत किया है।
उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु का जल्लीकट्टू पारंपरिक खेल है बेहद लोकप्रिय और यहां की भावना से जुड़ा हुआ है। जिसे किसी भी कीमत पर तमिलनाडु के लोग छोड़ना नहीं चाहते। यही वजह है कि पशु क्रूरता अधिनियम के तहत कुछ सालों तक प्रतिबंधित खेल जलीकट्टू फिर से मनाए जाने लगा है।