-मुकेश कुमार सिन्हा-

पुरानी प्रेम कविताएँ
होती हैं उन प्रेमिकाओं सी
जो बेशक़ ब्याही गईं हों
कहीं और…
पर उनको पढ़ते हुए
लगता है ऐसे
जैसे राह चलते कहीं
मिली हो वो
और एकदम से कविता का भाव
और उसके मुस्कुराते चेहरे ने
पूछ भर लिया हो…
– है न अभी भी ग़ुलाबी आत्मीयता
और, और …
अंतिम पैरा तक पहुंचते हुए
समझ आ गया,
शब्दों-भावों का पुराना होना
ठीक वैसे ही,
जैसे… जैसे …
तभी भाग कर आया बच्चा,
बोल उठा…
जल्दी चल न अम्मा
भक्क से चल पड़ी…
कविता और …
… पुरानी प्रेमिका।
-मुकेश कुमार सिन्हा
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