शरद पूर्णिमा: महारास रचाया था श्री कृष्ण ने

पौराणिक मान्यता के अनुसार माता लक्ष्मी का प्राकट्य व भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा को ही माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन श्री कृष्ण ने महारास रचाया था। आज भी कई स्थानों पर रासलीलाओं का आयोजन किया जाता है।

-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

शरद ऋतु में अश्विन मास की पूर्णिमा को यह पर्व ब्रज क्षेत्र (प्रदेश) ही नहीं राजस्थान, गुजरात तथा और भी कई अन्य राज्यों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन से गुलाबी सर्दी का अहसास होने लगता है। आश्विन मास में शारदीय नवरात्रों के समाप्ति के पांचवे दिन आने वाली पूर्णिमा को ही शरद पूर्णिमा / कोजागरी / रास पूर्णिमा भी कहते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार माता लक्ष्मी का प्राकट्य व भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा को ही माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन श्री कृष्ण ने महारास रचाया था। आज भी कई स्थानों पर रासलीलाओं का आयोजन किया जाता है। ज्योतिषीय मान्यता यह भी है कि वर्षभर की अपेक्षा इस दिन का चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से युक्त होकर, अमृत की वर्षा करता है। इस दिन चंद्रमा अपने अद्वितीय सौंदर्य के साथ अधिकतम उज्जवल प्रकाश बिखेरता है। शायद इसलिए इस दिन खीर बनाने की परंपरा है, जो कि स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। दमा रोगियों को शरद पूर्णिमा पर रात्रि में खीर के साथ औषधि सेवन कराया जाता है। खीर को छत पर किरणों की रोशनी में रख कर, भोग लगाकर प्रसाद बांटा व खाया जाता है। खीर को यदि मिट्टी या चांदी के पात्र में रखा जाए तो इसकी गुणवत्ता और भी बढ़ जाती है क्योंकि चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने से, विषाणु दूर होकर औषधीय गुणों में वृद्धि होती है। आयुर्वेद के अनुसार, इन दिनों बढ़े हुए पित्त को शांत करने के लिए यह अति उत्तम है। इसमें दूध, चावल व चांदनी तीनों ही पित्त शामक, आरोग्यवर्धक हैं।
इसदिन (योग चिकित्सक से सीखा हुआ हो) चांद को देख कर त्राटक करना चाहिए। या वैसे ही निहार कर देखें। फिर आंखें झपक लें। रात्रि में चंद्रमा की किरणों का फायदा अवश्य लें। आप आसन बिछाकर या लेटे लेटे भी चन्द्रमा को देख सकते हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि को सुई में धागा पिरोने की परंपरा तो शायद अधिकतर लोगों ने बचपन में कभी न कभी अवश्य निभाई होगी। हमने भी किया है कई बार। कहते हैं इससे नेत्र ज्योति ठीक है या नहीं, इसका पता चलता है। गर्भवती महिला को भी चांदनी रात में अवश्य रहना चाहिए, गर्भस्थ शिशु के लिए बहुत अच्छा है।
एक और प्रयोग अवश्य करें, शरद पूर्णिमा की रात्रि को काली या सफेद मिर्च, गाय का घी, बूरा या मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर, मिश्रण तैयार करें। इस मिश्रण को पूरी रात चंद्रमा की रोशनी में रखें। चंद्रमा की रोशनी से यह मिश्रण आंखों के लिए बहुत ही प्रभावशाली है। सर्दियों में रोज सुबह 2 चम्मच तक लेना शुरू करें। आंखो के लिए बहुत हितकर है। इसे लगभग एक से तीन महीने तक प्रयोग करें। और भी असरदायक करने के लिए इसके प्रयोग में बदलाव कर फायदा ले सकते हैं। किसी आयुर्वेद चिकित्सक की निगरानी में तीन, पांच दिन में भी इसका सेवन कर लाभ लिया जा सकता है, लेकिन परहेज अति आवश्यक हैं। कई बार दस्त, शरीर में तीखी गर्मी या जलन जैसा महसूस हो सकता है। यह प्रयोग करते हुए अति व्यायाम, मेहनत, गर्मी, धूप, मिर्च मसाले, पित्त वर्धक चीजों से बचें। घी दूध का प्रयोग व हल्का भोजन, खिचड़ी आदि का सेवन करें।

शरद पूर्णिमा_ हाइकु

हरसिंगार
सत्यभामा के लिए
इन्द्र परास्त

लाए श्रीकृष्ण
देवों का अतिप्रिय
औषधि दरख़्त

चंद्र किरणें
अमृत बरसाए
महारास में

चांद है पूर्ण
सोलह कला युक्त
कोजागिरि में

चांदनी रात
ओढ़ धवल वस्त्र
चांदनी आई

रश्मि रथ पे
सवार रजत सी
धरा उतरी
__ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान

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