सुबोध जी भाई साब का पत्रकारिता से अध्यात्म की ओर बढ़ता सफर

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-शैलेश पाण्डेय-

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कोटा के प​त्रकार जगत में सुबोध जैन यानि हमारे सुबोध जी भाई साब का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। चार​ दशक तक पत्रकारिता में अपना जीवन समर्पित करने और अपनी धारदार और एक्सक्लूसिव खबरों से पहचान बनाने वाला ऐसा शख्स ​यदि अध्यात्म के क्षेत्र में भी अपना समर्पण प्रदर्शित करे तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है। चाहे खेल (हॉकी और क्रिकेट) का मैदान हो या प​त्रकारिता का हमेशा अपने जुझारूपन से छाप छोड़ने वाले सुबोध जी भाई साब का मानवता के क्षेत्र में भी योगदान कम नहीं रहा है। वह अपने ए निगेटिव ग्रुप का ब्लड 125 से ज्यादा बार दान कर चुके हैं। जब भी किसी जरूरतमंद को इस ग्रुप का ब्लड नहीं मिला सुबोध जी बगैर जाति धर्म देखे रक्तदान के लिए तैयार हो जाते।
हालांकि सुबोध जी भाई साब जैन धर्म के उपासक हैं लेकिन व्यस्त पत्रकारिता जीवन के कारण अध्यात्म के प्रति लगाव कुछ ही वर्षों से हुआ। अचानक हुए इस बदलाव का परिणाम पिछले साल देखने को मिला जब उन्होंने दस लक्षण पर्व पर दस उपवास कर सभी पत्रकार साथियों को चौंका दिया। पिछले वर्ष ग्रेटर कोटा प्रेस क्लब के वार्षिक कार्यक्रम में सुबोध जी उपस्थित हुए तो बहुत कमजोर नजर आ रहे थे। जब साथियों ने उनके हालचाल जाने तो पता चला कि आध्यात्म की ओर कदम बढ़ा रहे हैं और इस बार दस उपवास कर चुके हैं। तब भी उनका सम्मान किया गया।

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दस उपवास की सफलता के बाद उन्हें इस बार के दस लक्षण महापर्व पर कठिन 16 उपवास तप की साधना पूर्ण करने को प्रेरित किया। उन्होंने इसे पूरी लगन और निष्ठा से पूरा करके ही दम लिया। हालांकि मैं धर्म के बारे में अज्ञानी हूं लेकिन जैन मतावलम्बियों के साथ जीवन का कुछ वक्त बिताने के कारण यह तो जानता हूं कि इनके तप कितने कठिन होते हैं। यह हर किसी के वश की बात नहीं है।

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अपनी धर्मावलंबी माताजी से प्रभावित सुबोध जी भाई साब पूर्व में दस लक्षण पर्व पर एक दो बार पांच उपवास तक कर चुके थे। लेकिन इस तरह के उपवास को किसी भी जैन धर्मावलंबी के लिए सामान्य माना जाता है। उन्होंने पिछले साल दस तप से अध्यात्म के क्षेत्र में जो डुबकी लगाई तो इसी को आगे बढाते हुए इस बार 16 तप का कठिन संकल्प धारण किया। हालांकि यह प्रण कोई आसान काम नहीं था क्योंकि इस अवधि में उनका आठ ​किलो वजन कम हो गया। जो किसी भी स्वस्थ व्यक्ति के लिए असामान्य स्थिति है। उपवास के दौरान प्रतिदिन केवल एक से डेढ़ गिलास जल पर निर्भर रहना पड़ता है। लेकिन इससे भी कठिन समय उपवास के पारणा के बाद का होता है। यानी आज से लगभग एक माह का समय उनके शरीर को सामान्य अवस्था में आने के लिए अति महत्वपूर्ण है। जिसके लिए उन्हें उपवास से भी ज्यादा सावचेत रहना होगा।
यारों के यार और हमेशा मदद को तैयार रहने वाले सुबोध जी का आज पारणा उत्सव था। इस अवसर पर उनको बधाई देने के लिए परिजन, रिश्तेदार और दोस्त और शुभ​चिंतक उपस्थित हुए। सुबोध जी भाई साब भले ही 16 दिन के उपवास के बावजूद कुछ घूंट विभिन्न प्रकार के जल पर निर्भर थे लेकिन पारणा उत्सव में शामिल सभी लोगों का उन्होंने स्वादिष्ट भोजन से सत्कार किया। हालांकि उपवास से तप कर निखरे शरीर में कमजोरी के कारण उन्हें बोलने तक में परेशानी हो रही थी लेकिन प्रत्येक मेहमान की उन्होंने व्यक्तिगत खोज खबर ली और आग्रह कर भोजन कराया।

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