होली रंगो-उमंगो और प्रेम-भाईचारे का है अनुपम त्योहार

कोटा में होलिका दहन को लेकर बीते सालों में खास परंपराएं निश्चित हुई है क्योंकि अब लोग पहले की तरह कुछ खास कई स्थानों पर ही होलिका का दहन नहीं करते बल्कि आमतौर पर आजकल हर मोहल्ले में होलिका के दहन की परंपरा शुरू हो गई है। चाहे वह छोटे स्तर पर होलिका दहन का कार्यक्रम हो या नयापुरा, पुरानी सब्जी मंडी, पाटनपोल, रामपुरा,भीमगंजमंडी जैसी बड़े पैमाने पर होलिका दहन करने के बड़े कार्यक्रम।

holi ke rang
प्रतीकात्मक फोटो

-कृष्ण बलदेव हाडा-

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कृष्ण बलदेव हाडा

वैसे भी होली एक ऐसा रंग-बिरंगा त्योहार है, जिसे कमोबेश ज्यादातर धर्मों के लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते हैं। प्यार भरे रंगों से सजा यह पर्व हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन खोलकर भाई-चारे का संदेश देता है। इस दिन सारे लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूल कर गले लगते हैं और एक दूसरे के शुभकामनाएं देते है।
इस दिन लोग प्रात:काल उठकर रंगों को लेकर अपने नाते-रिश्तेदारों व मित्रों के घर जाते हैं और उनके साथ जमकर होली खेलते हैं। बच्चों के लिए तो यह त्योहार विशेष महत्व रखता है। वह एक दिन पहले से ही बाजार से अपने लिए तरह-तरह की पिचकारियां व गुब्बारे लाते हैं। बच्चे गुब्बारों व पिचकारी से अपने मित्रों के साथ होली का आनंद उठाते हैं।
सभी लोग बैर-भाव भूलकर एक-दूसरे से परस्पर गले मिलते हैं। घरों में औरतें एक दिन पहले से ही मिठाई, गुंझिया आदि बनाती हैं व अपने पास-पड़ोस में आपस में बांटती हैं। कई लोग होली की टोली बनाकर निकलते हैं। इस बार दो दिन से होली का उत्सव 6 और 7 मार्च को आयोजित किया जाना है।

पहले दिन पूर्णिमा को पुरानी परंपरा के अनुसार शहर में कई जगहों पर होलिका दहन किया जाएगा। कोटा में होलिका दहन को लेकर बीते सालों में खास परंपराएं निश्चित हुई है क्योंकि अब लोग पहले की तरह कुछ खास कई स्थानों पर ही होलिका का दहन नहीं करते बल्कि आमतौर पर आजकल हर मोहल्ले में होलिका के दहन की परंपरा शुरू हो गई है। चाहे वह छोटे स्तर पर होलिका दहन का कार्यक्रम हो या नयापुरा, पुरानी सब्जी मंडी, पाटनपोल, रामपुरा,भीमगंजमंडी जैसी बड़े पैमाने पर होलिका दहन करने के बड़े कार्यक्रम। लेकिन अब यह देखा जाता है कि होली का दहन से काफी दिन पहले ही लोग इसकी तैयारी में जुट जाते है और कई दिनों की तैयारियों के बाद अपने स्तर पर साज-सामान जुटा कर पूर्णिमा की रात को होलिका का दहन करते हैं इसका अगला दिन रंगों का त्योहार धुलंड़ी होता है जब लोग न केवल अपने घरों में रहकर परिवार और परिवार के अन्य सदस्य के चेहरे पर गुलाल या रंग लगाकर उनके प्रति प्रेम और भाईचारे की अभिव्यक्ति करते हैं बल्कि अपने दोस्तों-पड़ोसियों से मिलने के लिए उन घरों पर पहुंचते हैं ताकि उनके रंगों के इस पर्व की खुशियों को साझा किया जा सके।
आपस में मेल-मिलाप, प्रेम और भाईचारे की इस परंपरा का बीते कई सालों की तरह इस बार भी निर्वाहन किया जायेगा। दो दिन के इस फ़ेस्टिवल को मनाने के लिये पहले से ही महिलाओं की भी अपनी एक खास तैयारी होती है। वे होली और धुलंड़ी के दो दिन के इस फेस्टिवल के मौके पर अपने घर-परिवार के लोगों के साथ खुशियों को रंगो सहित साझा करने के अलावा उनका मुंह मीठा करवाने की नीयत से अपने हाथों से मिठाइयां बनाती है।
बाद में वे न केवल घर और परिवार के सदस्यों को यह मिठाईयां खिलाती हैं बल्कि खुशी के इस मौके को आपस में मिलजुल कर बांटने के लिए घर आने वाले अतिथियों का स्वागत करते हुए उन्हें यह मिष्ठान परोसती हैं।
खुशी और रंगों के इस पावन पर्व को मनाने में इसी तरह की बाधा उत्पन्न नहीं हो, इसके लिए पुलिस और प्रशासन की भी खास तैयारियां रहती है। खासतौर से पुलिस वाले इन दो दिनों में ड्यूटी की अपनी जिम्मेदारी को पूरी मुस्तैदी के साथ निभाते हैं ताकि आम आदमी यह त्योहार खुशी से सराबोर रहते हुए मना सके। ड्यूटी पर रहने के कारण पुलिस वाले आमतौर पर अगले दिन ही यह त्यौहार मना पाते

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