
– विवेक कुमार मिश्र-
एक अच्छी कविता के लिए
महंगे कलम – कागज की जरूरत नहीं होती
न ही डायरी की …कविता उतर जाती
देह के खुरदुरे पन्नों पर
नहीं तो मन पर खुदते खुदते एक दिन आत्मा पर ही खुद जाती
कोई कलम न भी हो तो लिख जाती है
उतरी हुई कविता
दुःख और दर्द को नापने के लिए पात्र की जरूरत नहीं पड़ती
देखते ही दिख जाता कि अथाह दुःख में कांप रहा है आदमी
कुछ भी पूछने जांचने की जरूरत नहीं पड़ती
यहां पर कविता की उपस्थिति बनी रहती है
एक कवि के लिए
इतना काफी होता है कि वह अदृश्य दर्द को भी देख और पढ़ लेता है
समय के इस पार से उस पर की जिंदगी
उसके यहां कविता की तरह दर्ज होती रहती है
जहां कोई नहीं होता
किसी के देखें जाने और लक्षित किये जाने का खतरा नहीं होता
वहां कविता की उपस्थिति सहज होती है
अलक्षित संदर्भ से कविता ऐसे खिलती है कि
कोई ठूंठ पर फूल खिल गया हो
कुछ इसी तरह कविता खिलती रहती है
इस तरह एक बात साफ है कि
कविता के जंगल में आश्चर्य के फूल खिलते हैं
जहां से किसी भी दिशा में कदम बढ़ाएं
यथार्थ का साक्षात् बिना किसी आश्चर्य के होता है ।
– विवेक कुमार मिश्र
(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
F-9, समृद्धि नगर स्पेशल , बारां रोड , कोटा -324002(राज.)

















