
– विवेक कुमार मिश्र-

कचनार के फूल
पेड़ है भरा पूरा कहते हैं कि कचनार है
ऐसे खिला है कि बहार बन झूमता रहता
पेड़ पर फूल ऐसे खिलता कि पत्तियां गिन लें पर फूल नहीं गिन पाता
सारे फूल इस तरह फूलते कि बस देखते रहिए
रंग जाता कचनार के आसपास का संसार और मन गुलाबी खिले कचनार सा
यह कचनार का पेड़ है पर खिल कर फूल सा हो जाता है
फुल कचनार के खिले हैं बहार से
इतना खिले कि बस देखते रहे
हरे भरे पत्ते के बीच से निकले हैं
गुलाबी पत्ते से फूल
इस पथ पर एक नहीं हजारों हजार फूल खिलते दिखते हैं
मन से मिलते हुए से दिखते हैं
गुलाबी रंग से सजे हुए दिखते हैं
कचनार
इतना खिल जाते कि पत्ते भी पत्ते से नहीं दिखते
सब कुछ कच कचनार सा खिल जाते
राह चलते बुलाते हैं बतियाते से खिलते हैं
कचनार रंग से भरे हैं जीवन से बिधे हैं
सजे हैं रंग से भरे हैं कचनार जो ठहरे
रास्ते पर इस तरह बने हैं कि बरबस ही खींच लेते ध्यान।
(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)