
-प्रकाश केवडे-

उलझा है हर कोई
अपनी ही उलझन में
बेखबर इससे क्या छुपा
है उसके दामन में।
चाहे जो भी कर लूं
जी है कि भरता नहीं
फूटा घड़ा रखा है
मैंने अपने ही मन में।
ये सही है या वो सही है
रह रह के उठता सवाल
दिल है कि मसरूफ
अब बस इसी उधेड़बुन में ।
प्रकाश केवडे
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