
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
लोग अक्सर डूब जाते हैं नदी में।
इससे बेहतर डूबना है शायरी में।।
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खो भी जाओ चंद लम्हों की ख़ुशी में।
वर्ना ग़म ही ग़म मिलेंगे ज़िंदगी में।।
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अब जबीनो पर निशाॅं बनते नहीं हैं।
अब मज़ा आता नहीं है बंदगी में।।
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वो भी मुझमें अक्स अपना देखते हैं।
मैं भी ख़ुद को ढूॅंढता हूॅं हर किसी में।।
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आओ इस मंज़र को ऑंखों में बसालें।
आओ थोड़ी देर बैठें चाॅंदनी में।।
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उसके हक़ में रात भर माॅंगी दुआऍं।
ये मेरा पहला क़दम था दुश्मनी में।।
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कुछ तो अंदाज़े सुख़न बदले हमारा।
कुछ तो तब्दीली हो “अनवर” शायरी में।।
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जबीनो* ललाट माथों
बंदगी* इबादत प्रार्थना
अक्स* परछाई
हक़ में* पक्ष में
अंदाज़े सुख़न* काव्य शैली
शकूर अनवर