ऑंखों में आ के बस गए मंज़र सराब* के। “देखे थे हमने ख़्वाब तो यारो गुलाब के”।।

ग़ज़ल

 -शकूर अनवर-

शकूर अनवर

ऑंखों में आ के बस गए मंज़र सराब* के।
“देखे थे हमने ख़्वाब तो यारो गुलाब के”।।
*
जलवे यहाॅं वहाॅं उसी मस्ते शबाब* के।
बरसेंगे अब तो शहर में बादल शराब के।।
*
चेहरे से थी अयाॅंलबो रुख़सार की चमक।
देखे नहीं वरक़*कभी ऐसी किताब के।।
*
परदे में जिसके पिन्हा* कोई महजबीन* था।
क़िस्से ज़ुबाॅं ज़ुबाॅं पे हैअब उस नक़ाब के।।
*
उनको मिला न वक़्त कि पढ़ते मेरे ख़ुतूत*।
हम मुंतज़िर ही रह गए “अनवर” जवाब के।।
*

सराब* मरीचिका,
मस्ते शबाब* मद मस्त यौवन,
अयाॅं* ज़ाहिर,
लबो रुख़सार* होट और गाल,
वरक* पृष्ठ,
पिन्हा* छिपा हुआ,
महजबीन* चाॅंद के जैसी शक्ल वाला,
ख़ुतूत* पत्र, ख़त का बहु वचन,

शकूर अनवर
सेठानी चौक श्रीपुरा कोटा
मो0 9460851271

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