और कुछ देर ठहर, ऐ दिले-बेताब* ठहर। चाॅंद जो छुप गया बदली में निकलता होगा।।

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फोटो साभार अखिलेश कुमार

ग़ज़ल

-शकूर अनवर

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शकूर अनवर

*
ग़म का लावा कहीं अन्दर का पिघलता होगा।
तब कहीं जाके वो अशआर* में ढलता होगा।।
*
जाऊँ बतलाऊँ शबे-हिज्र* कटी है कैसे।
सैर के वास्ते वो घर से निकलता होगा।।
*
झुर्रियाँ आपके चेहरे की पता देती हैं।
आपके हुस्न का सिक्का कभी चलता होगा।।
*
उसकी यादों के ही साये मुझे ठंडक देंगे।
वर्ना सूरज तो अभी आग उगलता होगा।।

और कुछ देर ठहर, ऐ दिले-बेताब* ठहर।
चाॅंद जो छुप गया बदली में निकलता होगा।।
*
कल उसे नोच ही डालेगा ज़माना सोचो।
आज जो ग़ुंचा*यहाँ फूलता-फलता होगा।।

सामने दूर जो दिखता है उजाला “अनवर”।
घर वहाँ पर किसी मजबूर का जलता होगा।।
*
शब्दार्थ:-
अशआर*शेर,कविता
शबे-हिज्र*वियोग की रात
दिले-बेताब*बेचैन दिल
ग़ुंचा *कली
शकूर अनवर
9460851271

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