
ग़ज़ल
शकूर अनवर
कल शब* को तुझे जब याद किया, ये ऑंख मेरी भर आई थी।
कल रात बहुत सन्नाटा था, कल रात बहुत तन्हाई थी।।
जब सहने-चमन* में तुझ से मिला, मंज़र पे उदासी छाई थी।
मायूस बहुत नग़मा* था मेरा, ख़ामोश तेरी शहनाई थी।।
जिस रोज़ मिले थे हम तुझ से, उस दिन का बयाॉं लफ़्जों में नहीं।
वो सुबह बड़ी ज़ालिम* निकली, वो शाम बड़ी हरजाई थी।।
लोगों में तेरी बेलौस वफ़ा*, मशहूर हुई अच्छा न हुआ।
इतनी हुई शोहरत दुनिया में, सोचा तो तेरी रुसवाई थी।।
उस हुस्न पे माना पर्दा था, जलवों का मगर वो आलम* था।
मैं ताबे-नज़ारा* क्या लाता, नाकाम मेरी बीनाई* थी।।
ऐ हुस्ने-मुजस्सम* तू ही बता, बिजली ने उसे क्यूँ ख़ाक किया।
फूलों से लदी होने के सबब, जो शाख़ बहुत इतराई थी।।
“अनवर” की ग़ज़ल सुन-सुन के सभी, महज़ूज़ हुए* फिर कहने लगे।
अल्फ़ाज़ में कैसी नुदरत* थी, अशआर में क्या गहराई थी।।
*
कल शब*कल रात
सहने-चमन*उपवन का मैदान
नग़मा*गीत
ज़ालिम*जुल्म करने वाला
बेलौस वफ़ा*निश्छल प्रेम
आलम*स्थिति हालत
ताबे-नज़ारा*देखने की शक्ति
बीनाई*दृष्टि
हुस्ने-मुजस्सम*सम्पूर्ण यौवन वाला
महज़ूज़ हुए*आनन्दित हुए
नुदरत*अनोखापन नवीनता
शकूर अनवर
9460851271

















