
– विवेक कुमार मिश्र-
कहानियों किस्से में
गुम नहीं होता संसार
संसार चलता रहता
जैसे कि चिटियां चलती हैं
और रच देती हैं अस्तित्व की इबारत
यहां से वहां तक रच जाता उनके चलने में
जीवन का उत्सव और जीवन से रचा बसा आनंद
चिटियां बताती हैं कि यहीं से हम चलें थे
और चलते चलते
अनंत पहाड़ की ऊंचाई भी छूं सकतें
आकाश में भी अपने होने का विचार रच सकते
आखिर लोकतंत्र तो कहीं से कहीं भी रच सकता
साहस का आकाश और संसार का अस्तित्व
इस क्रम में चिटियां रचती जाती हैं
संसार और अर्थ का रचा बसा संसार
चिटियां संसार में आ जाती
और समय के साथ गायब हो जाती
पर कभी भी चिटियां
पूरी तरह से गायब नहीं होती
कोई भी गायब नहीं होता
सब अपने अस्तित्व के साथ दुनिया में बने होते
और दुनिया को दुनिया की तरह देखते हैं
ऐसा कभी नहीं होता कि आप कह उठे कि
कुछ नहीं होता
हां ! कुछ न कुछ हमेशा बच जाता
कोई कहे या न कहें
पर वह बचा संसार
हमारी दुनिया के लिए…
औरों की दुनिया के लिए काफी होता है।
– विवेक कुमार मिश्र
सह आचार्य हिंदी
राजकीय कला महाविद्यालय कोटा
एफ -9 समृद्धि नगर स्पेशल बारां रोड कोटा -324002