
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
जब यौवन पर आई नद्दी।
फिर कैसी इठलाई नद्दी।।
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कितनी निर्मल कितनी सुंदर।
जैसे आज नहाई नद्दी।।
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मैने समझा तुम आए हो।
जब सपने में आई नद्दी।।
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जब जब दिल में पीड़ा उट्ठी।
ऑंखों में भर आई नद्दी।।
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ये तेरी ममता का ऑंचल।
ये तेरी गहराई नद्दी।।
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ये तेरी लहरों की सरगम।
ये तेरी शहनाई नद्दी।।
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तृष्णाओं के अभ्यासी थे।
क्यूॅं रस्ते में आई नद्दी।।
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दिल की कश्ती डूबी इसमें।
फिर भी मन को भाई नद्दी।।
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मैं तेरा शैदाई* “अनवर’।
तू कितनी हरजाई* नद्दी।।
”
शैदाई*प्रेम में डूबा हुआ
हरजाई” निष्ठुर
शकूर अनवर
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