ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
लो मुहब्बत में सब कुछ लुटा तो चला।
दिल की ख़ातिर ये सर भी कटा तो चला।।
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राह की मुश्किलें हमसफ़र* बन गईं।
साथ मेरे मेरा क़ाफ़िला तो चला।।
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देख मरने की ख़ातिर मैं तैयार हूँ।
ओ सितमगर* तेग़-जफ़ा* तो चला।।
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कितने दिन हुस्न की ये हुकूमत चली।
उम्र ढलने से उनको पता तो चला।।
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नफ़रतों की दिलों से घुटन दूर कर।
कुछ मुहब्बत की यारब हवा तो चला।।
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कैसे ठहरेगा सूरज के ये सामने।
रात भर जो जला वो दीया तो चला।।
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जान “अनवर” वफ़ा में गई तो गई।
अपनी गर्दन पे ख़जर चला तो चला।।
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हमसफ़र*साथी, सहयात्री
सितमगर*ज़ुल्म करने वाला, प्रेमिका
तेगे जफ़ा*ज़ुल्म की तलवार
शकूर अनवर
9460851271