क्या तरक्की का चेहरा गैर होता है…

grameen women
photo courtesy akhilesh kumar

-सरस्वती रमेश-

सरस्वती रमेश

जब भी चढ़ती हूं
दिल्ली के किसी फ्लाईओवर पर
याद आ जाते हैं मुझे
मेरे घर के पीछे के
कच्चे रास्ते
उन कच्चे रास्तों पर चल कर
कितनी जल्दी आ जाता था
पड़ोस की भौजाइयों का घर
चाचियों का आंगन
और परिचित चेहरों की भीड़
उन रास्तों की धूल में
कभी नहीं घुटा मेरा दम
कभी नहीं चुभे उसके कंकड़
मेरे नंगे पावों में
वो रास्ते मुझे प्रिय थे
और प्रिय थे उस पर चलने वाले सभी लोग
सोचती हूं
इन फ्लाईओवरों से उतरकर
क्यों नहीं आता किसी का घर
क्यों नहीं मिलता कोई परिचित
क्या तरक्की का चेहरा गैर होता है
या तरक्की हमारे चेहरों को
गैर बना देती है।

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