
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
चाहे कुछ देर सही दूर ॲंधेरा तो हुआ।
ख़ुश्क* पत्तों को जलाने से उजाला तो हुआ।।
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क़त्ल से मेरे किसी को भी यहाँ कुछ न मिला।
सिर्फ़ इतना हुआ मक़तल* में तमाशा तो हुआ।।
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मेरे उठने से तेरी बज़्म* में हलचल तो हुई।
मेरे जाने से तेरे नाम का चर्चा तो हुआ।।
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वर्ना दुनिया भी कहीं चैन से जीने देती।
तेरी यादों के सहारे ही गुज़ारा* तो हुआ।।
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मुंतज़िर* था कि इनायत की नज़र हो “अनवर”।
मुतमइन हूंँ अभी हल्का सा इशारा तो हुआ।।
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ख़ुश्क*सूखे हुए
मक़तल*वध स्थल
बज़्म*महफिल
गुज़ारा*निर्वाह
मुंतज़िर*प्रतीक्षारत
मुतमइन*संतुष्ट
शकूर अनवर
9460851271

















