
मित्रता दिवस पर विशेष
-डॉ. रामावतार सागर

आ गये सागर से मिलने यार कुछ ऐसे भी हैं।
इस अकेलेपन में मुझको तन्हा पीते देखकर ।
सागर, जी भर के खेलिए जज़्बात से यहाँ,
दुनिया ये फेसबुक की है यारों के यार की।
ढूँढता है दिल उसी को यार क्यूँ अब बार-बार,
नरगिसी आँखों में जैसे इक खज़ाना रह गया।
यूँ गले लगकर सिखाना उल्फतों के मायने,
इस तरह से यार हमने तो कभी सोचा नहीं।
गुनाह कर लिया हमने भी दिल लगाने का,
खुशी के दिन तभी से यार अब फरार चले।
उनकी नज़र में जुर्म ये मुझसे हुआ है यार,
इंसान मान बैठा था इक बेजुबान को।
डॉ. रामावतार सागर
कोटा राजस्थान।
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