परथन का आटा

ख़ुद को संवारने की कहाँ उसे फुर्सत होती है
माँ फिर भी बहुत खूबसूरत होती है…????

-रानी सिंह-

rani singh 01
रानी सिंह

रोटियाँ बेल रही माँ के कंधे पर
झूलती छोटी बच्ची
ज़िद करती थी अक्सर
माँ ! रहने दो ना
एक आखिरी छोटी वाली लोई
मैं भी बनाऊँगी एक रोटी
जो तुम्हारी बनायी रोटी से
होगी बहुत छोटी जैसे
मैं तुम्हारी बेटी छोटी-सी
वैसे ही तुम्हारी बड़ी रोटी की बेटी
मेरी वाली छोटी रोटी

और तब माँ समझाती
बड़े ही प्यार से
रोटी छोटी हो या बड़ी
एक रोटी दूसरी रोटी की
माँ नहीं होती
हाँ ! बहन हो सकती है।

तब आश्चर्य से पूछती
वो मासूम बच्ची
अच्छा! तो फिर
रोटियों की माँ कौन होती है ?

गोद में बिठा कर बेटी को
माँ हँसकर कहती
ये जो परथन का आटा है ना
यही रोटियों की माँ होती हैं
जो सहलाती हैं उसे
दुलारती है, पुचकारती है
लिपटकर अपनी बेटी से
बचाती है उसे बेलन में चिपकने से
ताकि वो नाचती रहे, थिरकती रहे
और ले सकें मनचाही आकार

आज वो बच्ची बड़ी हो गई है
और अहसास हो रहा है उसे
सचमुच माएँ भी बिल्कुल
परथन के आटा की तरह होती हैं
जिनके दिए संस्कार, प्यार-दुलार, दुआएं
लिपटी रहती हैं ताउम्र अपनी संतान से
ताकि सही आकार लेने से पहले ही
वक्त के बेलन तले चिपककर
थम न जाये उसकी जिंदगी।

©️ रानी सिंह

 

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments