परिंदों में बग़ावत हो रही है।। कहीं काटा गया है पर किसी का।।

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Photo Courtesy Ajatshatru

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

shakoor anwar
शकूर अनवर

बहुत खुश-रंग* है पैकर* किसी का।
मेरी ऑंखों में वो मंज़र किसी का।।
*
ग़ज़ब का रन पड़ा* है शहरे-दिल* में।
किसी की तेग़* है तो सर किसी का।।
*
ये मेरा घर जलाया क्यूँ किसी ने।
लगा है सर पे क्यूँ पत्थर किसी का।।
*
किसी की याद का मस्कन* हुआ है।
मेरा दिल बन गया है घर किसी का।।
*
परिंदों में बग़ावत हो रही है।।
कहीं काटा गया है पर किसी का।।
*
है फ़ितरत* ज़लज़ले* की बस तबाही।
कहाँ दिखता है इसको घर किसी का।।
*
मैं अपना आसमाॅं ओढ़े हुए हूँ।
नहीं सर पर मेरे छप्पर किसी का।।
*
किसी ने फिर मुझे रक्खा है दिल में।
हुआ अहसान फिर “अनवर”किसी का।।
*
शब्दार्थ:-
ख़ुश-रंग*सुंदर
पैकर*बिम्ब शक्ल
रन पड़ना*युद्ध होना
शहरे-दिल*प्रेम नगर
तेग़*तलवार
मस्कन*निवास
फ़ितरत*स्वभाव
ज़लज़ले*भूकम्प
शकूर अनवर
9460851271

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