
– विवेक कुमार मिश्र-

अनगिनत दिशाओं से होने की गाथा आती रहती है
पिता खुश हैं कि अस्तित्व के फूल खिल रहे हैं
इस घड़ी से निकलकर उस घड़ी तक जाना ही
हो जाता है इतिहास और यहां तो
लिखी जा रही है भविष्य की इबारतें
पिता खुश हैं कि….
यथार्थ की बस्तियों से
अब रचा जा रहा है इतिहास
नया इतिहास और सभ्यता की नई नई बातें
यहां इस तरह हो रही हैं कि
जैसे कोई खास बात न हो
पहचान की नई नई इबारत नई नई बातें
यहां इतिहास भी यथार्थ की राख से
इस तरह माजा जाता है कि …
सब कुछ नये सिरे से चमक जाता है
पिता खुश हैं कि …इस बस्ती से
यथार्थ की झांकियां और सच से साक्षात्कार से
नित नया संसार , नित नये स्वप्न साकार हो रहे हैं
पिता खुश हैं कि ….
एक बस्ती ऐसी भी बन चली है जो इतिहास की जगह
भविष्य के सपने लिए
यथार्थ का चेहरा रंगती है
नित नया इतिहास नया स्वप्न और नया सच रच रही है
पिता खुश हैं कि ….सारे सपने नये नये हैं।
(सह आचार्य हिंदी,राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा)

















