
-डॉ.रामावतार सागर-

क्या हुआ के खिड़कियाँ खामोश है
या किसी की मस्तियाँ खामोश है
नफरतों को वो हवा देने लगे
बस तभी से बस्तियाँ खामोश है
बर्फ बरसेगी यहाँ फिर आज भी
देर से ये वादियाँ खामोश है
दर्द उसने गा दिया आँखों से फिर
बज्म में क्यों तालियाँ खामोश है
बारिशों में भीग जाता है शजर
ये चहकती पत्तियाँ खामोश है
रात भी आकर के देती है सुकूं
लाल पीली बत्तियाँ खामोश है
देख कर सागर की ये खामोशियाँ
अब नदी की कश्तियाँ खामोश है
डॉ.रामावतार सागर
मोबाइल नं. 9414317171
ईमेल आईडीः ramavtar.gcb@gmail.co m
कोटा, राज.
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