फूटी हैं कितनी गागरें टूटे हैं कितने दिल। होते रहे ये हादसे अक्सर कुएँ के पास।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

ग़ैरों के वास्ते कई मंज़र कुऍं के पास।
मेरे नसीब में वही पत्थर कुएँ के पास।।
*
फूटी हैं कितनी गागरें टूटे हैं कितने दिल।
होते रहे ये हादसे अक्सर कुएँ के पास।।
*
तनक़ीद* कर रहे हैं वो हुस्नो-शबाब पर।
आपस में लड़ रहे हैं सितमगर कुएँ के पास।।
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हर शख़्स अपनी प्यास की शिद्दत* से चूर है।
ठहरेगा अब तो क़ाफ़िला जाकर कुएं के पास।।
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हम तो जुनूने-इश्क़ में सहरा-नशीं* हुए।
तुमने तो घर बना लिया जाकर कुएँ के पास।।
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ठुकरा के लौट आया था आबे-हयात* को।
प्यासा ही रह गया था सिकंदर कुएँ के पास।।
*
अंधे कुएं में कूद के इक शख़्स मर गया।
लाई थी उसको मौत पकड़कर कुएँ के पास।।
*
अब किसके इंतज़ार में बैठे हुए हो तुम।
अब वो न आयेंगे कभी अनवर कुएँ के पास।।
*

तनक़ीद*आलोचना
शिद्दत*तेज़ी
सहरा-नशीं*रेगिस्तान में रहने वाला
आबे-हयात*अमृत

शकूर अनवर
9460851271

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