
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

बिजली जला के घर मेरा जाने किधर गई।
हर शय* धुआँ धुऑं थी जहाँ तक नज़र गई।।
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उनकी निगाहे-क़ह्र* ने ग़र्क़ाब* कर दिया।
मौजे बला ए जान* थी सर से गुज़र गई।।
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थी नाख़ुदा की चाल या साज़िश हवाओं की।
कश्ती मेरी हयात की पानी से भर गई।।
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सब कुछ ही खो गया यहाँ दुनिया की भीड़ में।।
ऐ आरज़ू ए ज़ीस्त बता तू किधर गई।
”
किस शहरे बे अमान में ठहरा है क़ाफ़िला।।
किस घाट ऐ ख़ुदा मेरी कश्ती उतर गई।
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“अनवर”किसी के ग़म में जलाया था हमने दिल।
जंगल की आग जैसी हमारी ख़बर गई।।
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शय*चीज़, वस्तु
निगाहे कहर*ग़ुस्से से भरी नज़रें
ग़र्क़ाब*डूबना
बला ए जान* जान की मुसीबत
ना ख़ुदा*मल्लाह
हयात*ज़िन्दगी, जीवन
आरज़ू ए ज़ीस्त*ज़िन्दगी जीने की इच्छा
शहर ए बे अमान* अशांत नगर
शकूर अनवर
9460851271