बहुत कुछ कहना है

-डॉ अनिता वर्मा-

डॉ अनिता वर्मा

बहुत कुछ कहना है मुझे
जो कुछ उमड़ता है
ज्वार सा भीतर
निकलता कहाँ है पर….!
बहुत कोशिश बाद भी
विचार तटबन्ध से
आ खड़े होते उस क्षण
बांध देते उस उमड़ते ज्वार को
मन के भीतर घुमड़ते भाव
स्पंदन करते रहते
तानपुरे पर छेड़े राग सम
अंतर्मन का द्वंद्व
छिड़ा रहता प्रतिक्षण
कुछ कहने की चाह में
अनवरत बिम्ब स्मृतियों के
बनते बिगड़ते रहते हर पल
चित्रित हो जाता सब कुछ
अतीत से वर्तमान
कुछ गुदगुदा देता भीतर तक
अंतस का दर्द उभर आता कभी
सब कुछ चलता रहता
विचारों की धौंकनी
पिघलाती रहती विचार
लावा सदृश्य
पर चाह कर भी अभिव्यक्त
हो ही नही पाता जो
अनकहा ……।
जो रह गया है शेष
अभिव्यक्ति की नाकाम कोशिशें
टीस देती रहती सदैव
बहुत कुछ कहना है मुझे…।

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-डॉ अनिता वर्मा-
– सह आचार्य (हिन्दी विभाग), राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा (राज.)

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