बेटियां! दोपहर की झपकी सी…

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photo courtesy pixabay.com

-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

बेटियां होती हैं दोपहर की झपकी सी
जब भी आती है, उतार देती हैं थकान
झपकी देती है नई ऊर्जा,
दोपहर बाद
सांझ में कार्य करने के लिए
तो ऐसे ही…
बेटियां देती नवजीवन
संभाल जाती हैं,बिखरी अलमारियां
पुराने बिल, कागजात
दिखा जाती हैं धूप,कपड़े रजाई गद्दों को
भंडारे में रखे दाल, अनाज,अचार को
और दे जाती हैं नसीहत
अब खुद पर ध्यान दिया करो मां!
उम्र की सांझ में।
(कवयित्री व लेखिका मनु वशिष्ठ कोटा जंक्शन निवासी हैं)

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