
सखि री,आयो रे बसन्त ये आयो
-समय सिंह मीना-

सखि री, आयो रे बसंत ये आयो
सखि री, आयो रे बसंत ये आयो।
मन में उमंग है, तन में तरंग है
अन्तर्मन हुलसायो
सखि री, आयो रे बसंत ये आयो
धरती ओढ़े पीली चुनरिया
चाल चले मनोहारी
रस-प्लावित है अंग-अंग सब
तितली, मधुकर विहग वृन्द सब
मधुचूषण को आयो
सखि री, आयो रे बसंत ये आयो
धरती जागी अम्बर जागा
पवन बहे सुखकारी
जल-कण लगे सुहाने तन को
मन ललचाए चटक वसन को
प्रीतिरंग घिर आयो
सखि री, आयो रे बसंत ये आयो
पतझड़ सम विरागमय जीवन
नव-पल्लव नवसृजन पक्षधर
आशा और उमंग जगाने
नयी-नयी राह पंथ दिखलाने
मदन-वेष धर आयो
सखि री, आयो रे बसंत ये आयो
सखि री, आयो रे बसंत ये आयो।
* समय सिंह मीना
सहायक आचार्य, संस्कृत
राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा
मो.नं. 9468624700
ईमेल- ssmeena80@gmail.com*

















