
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
मुहब्बतों का रिवाज बदला।
न जाने कैसा समाज बदला।।
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ज़ुबान* मंसब* से गिर रही है।।
मुहावरों* का मिज़ाज* बदला।
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मरीज़ ए उल्फ़त* ने दम ही तोड़ा।
अगरचे कितना इलाज बदला।।
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बहुत दिनों में ग़ज़ल हुई है।
मेरा मुक़द्दर तो आज बदला।।
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वो ही तो ज़ालिम बने हैं “अनवर”।
न तख़्त* जिनका न ताज* बदला।।
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ज़ुबान* भाषा
मंसब *पद गरिमा
मुहावरे* उक्तियाॅं
मिज़ाज* स्वभाव
मरीज़ ए उल्फत* प्रेम रोगी
तख़्त*यानी सिंहासन
ताज* मुकुट
शकूर अनवर
9460851271
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