लेकर चला था साथ मेरे कितनी बारिशें, सावन के साथ आ गये दिन भी फुहार के।

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फोटो साभार अखिलेश कुमार

ग़ज़ल

-डॉ.रामावतार सागर

ramavtar sagar
डॉ.रामावतार सागर

थक तो चुका हूँ उसका मैं रस्ता निहार के,
दिखते नहीं है आसरे फिर भी बहार के।

कितना भी दूर हूँ मगर दिल के करीब हूँ,
जब जी में आए देख लो मुझको पुकार के।

ख़्वाबों में रोज़ ही तेरे आता रहूँगा मैं,
चाहे तो देख ले कभी मुझको बिसार के।

लेकर चला था साथ मेरे कितनी बारिशें,
सावन के साथ आ गये दिन भी फुहार के।

आती खुशी कहाँ से मेरी ज़िंदगी में फिर,
जब से रखा है गम को भी मैंने दुलार के।

जी तो रहा है आदमी किस मुश्किलात में,
किश्तों में घर है,गाड़ी है,सपनें उधार के।

सागर हजार रंग है इस कायनात में,
जिसको भी देखिएगा तो जी भर निहार के।

डॉ.रामावतार सागर

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