
ग़ज़ल
शकूर अनवर
सब उसको पागल कहते हैं यूॅं ही बकता रहता है।
फिर भी उसकी बात का जादू दिल पर छाया रहता है।।
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शह्र बसा कर शह्र जलाना अह्ले ख़िरद* समझायेगा।
अह्ले जुनूॅं* तो वीरानो में तन्हा फिरता रहता है।।
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मछली का विपरीत दिशा में चलने का साहस देखो।
पंछी में भी जान है कितनी फिर भी उड़ता रहता है।।
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अपना अपना रोल करो और दुनिया से रुख़सत ले लो।
दुनिया तो इक नाटक घर है पर्दा गिरता रहता है।।
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मैं अपने घर के छप्पर को ठीक कहाॅं तक करवाऊॅं।
बारिश का मौसम तो “अनवर” अक्सर आता रहता है।।
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अह्ले ख़िरद*बुद्धिजीवी
अह्ले जुनूॅं* दीवाना

















