
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
कब शजर* से टूटेंगे इन फलों को क्या मालूम।
कब कहाॅं गिरे बिजली घोंसलों को क्या मालूम।।
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सूखी-सूखी फसलों की अपनी-अपनी क़िस्मत है।
किस ज़मीं पे बरसेंगे बादलों को क्या मालूम।।
”
रहबरों* की साज़िश* से बेख़बर मुसाफ़िर हैं।
मंज़िलों की ख़ामोशी क़ाफ़लों को क्या मालूम।।
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क़र्ब* अपने अंदर का घुॅंघरुओं से ज़ाहिर* कर।
दिल में क्या ख़ुशी क्या ग़म पायलों को क्या मालूम।।
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दिल में मेरे ग़म क्यूॅं है सर पे ये सितम* क्यूँ है।
मेरी ऑंख नम क्यूँ है पागलों को क्या मालूम।।
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किस क़दर वो नादाॅं* हैं रोशनी समझते हैं।
जल गया चमन “अनवर” दिलजलों को क्या मालूम।।
शजर*पेड़
रहबरो*मार्गदर्शकों रास्ता बताने वालों
साज़िश*षडयंत्र
क़र्ब*दुख पीड़ा
ज़ाहिर* प्रकट
सितम*ज़ुल्म अत्याचार
नादाॅं*ना समझ
शकूर अनवर
9460851271