
-कृष्ण बलदेव हाडा-

कारगिल युद्ध से लेकर पुलवामा में आतंकी हमले जैसी घटनाओं में शहीद सैनिकों-अर्ध सैनिकों की वीरांगनायें अपनी कई मांगों को लेकर जयपुर में धरने पर बैठी थी। अन्य मांगों में इनमें एक मांग यह भी सामने आई है कि ये वीरांगनायें अपने पुत्र की जगह उसकी एवज में देवर को सरकारी नौकरी देने की मांग कर रही है।
इस मांग को लेकर सरकार पर दबाव बनाने के लिए कुछ वीरांगनाओं ने तो अपनी दूसरी शादी तक देवरों से कर ली है या देवरों से करने की तैयारी में है लेकिन सरकारी प्रावधान इस मांग को मानने की इजाजत नहीं देते कि पुत्र की जगह देवर या किसी ओर रिश्तेदार को उनुकम्पा से अनुगृहीत किया जाये और इसमें एक सबसे बड़ा पेच सामाजिक स्तर यह है कि अगर यदि यह मांग मान ली गई तो आमतौर पर ऐसा होता रहा है कि कई युवा सैनिक या अर्धसैनिक बलों के जवान युद्ध या अातंकियों से संघर्ष के मोर्चे पर आतंकी हमलों में शहीद हो जाते हैं जिनके बच्चे छोटे होते हैं तो ऐसे में सरकारी प्रावधानों के तहत आश्रित के रूप में शहीद के पुत्र को ही नौकरी देने के प्रावधान से परे हटकर यदि किसी मामले में परिवार के किसी अन्य सदस्य या देवर को पुत्र का जायज हक छोड़कर सरकारी अनुकम्पा नौकरी देने का प्रावधान कर दिया गया तो वीरांगनाओं पर पारिवारिक स्तर पर दबाव बनने लगेंगे क्योंकि अधिकांश मामलों में शहीद सैनिकों के आश्रित पुत्र छोटे होते हैं और उन्हें रोजगार उनके व्यस्क होने की स्थिति में मिलते हैं।
ऐसे में यदि देवर को पुत्र की जगह सरकारी नौकरी देने का प्रावधान कर दिया गया तो वीरांगना के ससुराल पक्ष के लोग सामाजिक स्तर पर दबाव बनाकर वीरांगना के पुत्र का हक छीन कर उसके देवर को रोजगार दिलवा सकते हैं। हालांकि सभी मामलों में ऐसा होगा, यह कह पाना मुश्किल है लेकिन राजस्थान के सामाजिक ताने-बाने में ऐसी बहुत सी जातियां हैं जहां नाता प्रथा के तहत विधवाओं को देवर के साथ चूड़ा पहनाकर पत्नी का दर्जा देने की परंपरा है। ऐसे में यदि देवर को नौकरी दे दी गई तो शहीद का पुत्र व्यस्क होने पर इस अधिकार से स्वत: वंचित हो जाएगा।
सामाजिक दबाव किस हद तक काम करते हैं, इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि वर्तमान में आंदोलन कर रही वीरांगनाओं में से एक ऐसी भी है जो अपने देवर के शादीशुदा होने के बावजूद उसके ससुराल वाले उसे दूसरे बेटे यानि देवर की बहू बनाने को राजी है जबकि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक पत्नी के होते हुए दूसरी शादी करना कानूनी रूप से मान्य नहीं है और एक अपराध की श्रेणी में आता है और यह स्थिति यह बन रही है कि इस वीरांगना को अपने देवर के नाम का चूड़ा पहनाया जाने की बात कही जा रही है जिसकी शादी इस वीरांगना की अपनी छोटी बहन से हुई है तो क्या यह वीरांगना अपनी छोटी बहन का उसके पति पर ‘हक को मारने’ को मन से स्वीकार कर रही है?
एक अन्य मामले में तो यहां तक हुआ है कि एक ऐसी वीरांगना का विवाह उसके देवर से कर दिया गया जिसके अपने पहले से ही दो बच्चे थे और देवर से विवाह के बाद में दो बच्चे और हो गए और अब देवर को शहीद के पुत्र की जगह नौकरी देने की मांग की जा रही है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत स्पष्ट रूप से कह चुके हैं कि शहीद के पुत्र की जगह देवर या किसी और को अनुकम्पा के इस मामले में बहुत सारे पेच है और कानून इस बात की इजाजत नहीं देता कि किसी शहीद के पुत्र के स्थान पर उसके देवर को सरकारी नौकरी दी जाए।
उधर शहीदों के परिवारजन अपने इस मांग को यह कह कर सही-जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हैं कि शहीद के बाद देवर ही अपने शहीद भाई के पुत्रों और पत्नी का लालन-पालन कर रहा है और उसने विवाह तक कर लिया है। ऐसे में अब यह दंपति बच्चों के लालन-पालन के लिए क्या करें ? ऎसे में सरकार को शहीद के पुत्र की जगह देवर को रोजगार दे देना चाहिए।
इधर कोटा जिले में एक शहीद की विधवा दो स्थानों पर शहीद की प्रतिमाएं लग जाने और एक सरकारी महाविद्यालय का शहीद के नाम नामकरण कर दिए जाने के बावजूद एक चौराहे पर अपनी पति की प्रतिमा लगाने और सड़क का नामकरण पति के नाम करने पर अड़ी हुई है और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व विधायक सहित अन्य कई भाजपा नेता इसको लेकर राजनीति कर रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं)

















