
-डॉ.रामावतार सागर-

लिख करके भेजी हमने कुछ अरजियाँ ग़ज़ल में।
दिल का करार सारा,दुश्वावारियाँ ग़ज़ल में।
उसको भुलाने का भी अब फायदा नहीं हैं,
जिसको लिखी थी हमने सब चिट्ठियाँ ग़ज़ल में।
जो चाक है गरीबां नजराना इक हसीं का,
होती नहीं रफू ही,तुरपाइयाँ ग़ज़ल में।
कोई नया नहीं हैं चुपके से आना जाना,
खुलती रही है पहले भी खिड़कियाँ ग़ज़ल में।
आशिक मिजाज़ सारे हैं आस पास उसके,
शामिल हो जैसे उसकी अंगडाइयाँ ग़ज़ल में।
मानों घटाएँ बनकर बरसी हो जुल्फें तेरी,
चमकी हँसी लबों की बन बिजलियाँ ग़ज़ल में।
सागर तुम्हें सलीका आता नहीं ग़ज़ल का,
उस्ताद कोई ढूँढ़ो तुम भी मियाँ ग़ज़ल में।
डॉ.रामावतार सागर
कोटा, राज.

















