
– विवेक कुमार मिश्र-

जड़े कुछ इस तरह होती हैं कि
इन्हें छोड़कर कहीं जा नहीं सकते
जड़े बांधकर रखती हैं
मिट्टी के संग साथ कुछ इस तरह बांध देती कि
आप कहीं जा नहीं सकते
मिट्टी के साथ रिश्ते जोड़ जड़ें न जाने कहां चली जाती
कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि
पाताल में पानी पीने जड़े जाती हैं
और जब खुली हवा लेनी होती
तो आकाश तक आ जाती हैं
जड़े कहीं भी एक जगह स्थिर नहीं होती न रुकती
बस चलती ही चली जाती
इस संसार से उस संसार तक जड़ें
अपना पसारा रखती और बातें भी चलती रहती हैं कि
यहां से जड़े चली थी और यहां पर रुक गई थी
जड़ों के साथ ही पीढ़ियां
एक दूसरे से परिचित होती
एक दूसरे से साक्षात्कार करते हुए आगे बढ़ती हैं
कहीं से कहीं तक क्यों न चलें जाये
आप कहीं भी पहुंच जाये
जड़े कहीं भी आपका साथ नहीं छोड़ती
जड़े कुछ इसी तरह बनी रहती हैं
जैसे कि हमारे साथ पिता – पितामह
और उनके पिता और उनके पितामह
सब आपस में घुलते मिलते
एक दूसरे के साथ चलते रहते हैं
सब हमारे भीतर से बोलते रहते हैं
कुछ इसी तरह जड़े
बचाकर रखती हैं दुनिया जिसे हम सब
जाने अनजाने छोड़ते चलते हैं
उसे जड़े ही संभाल कर रखती हैं।
– विवेक कुमार मिश्र
(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
F-9, समृद्धि नगर स्पेशल , बारां रोड , कोटा -324002(राज.)