ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
देखा जहाॅं जहाॅं वहीं ख़ंजर बहुत मिले।
ख़ूॅं रेज़ियों* के हर कहीं मंज़र बहुत मिले।।
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वो हौसला वो अज़्म” किसी में नहीं मिला।
लोगों के यूॅं तो नाम सिकंदर बहुत मिले।।
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इंसान कम मिले मुझे दुनिया की भीड़ में।
यारब तेरी ज़मीं पे पयंबर” बहुत मिले।।
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मोती तुम्हारे वस्ल* के नायाब* ही रहे।
लेकिन तुम्हारे हिज्र* के गौहर* बहुत मिले।।
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हमसे मसर्रतों* के रहे दूर क़ाफिले।
“अनवर” ग़मों के राह में लश्कर बहुत मिले।।
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ख़ूरेज़ियों*मार काट लड़ाई झगड़ा
अज़्म*हौसला
पयम्बर*अवतार
वस्ल*मिलन
नायाब*दुर्लभ
हिज्र*जुदाई वियोग
गौहर*मोती
मसर्रतों*ख़ुशियों
शकूर अनवर
9460851271

















