
-डॉ अनिता वर्मा-

संवाद
बात करते करते
चुप हो जाते हो तुम
शेष बचे मौन के साथ
संवाद का आखरी शब्द पकड़े
मैँ जोहती हूँ बाट
वाक्य के पूर्ण होने का
जिसके भीतर अंतर्निहित है
बहुत कुछ अनुत्तरित प्रश्न
संवाद का सतत जारी रहना ही
जोड़े रखता है हम सबको
जुड़े रहते है हम एक दूसरे से
बंधे रहते है आत्मा के तार
जो परिचायक होते है
सम्बन्धों की मजबूती के
कुछ न कहने से कुछ भी कहना
श्रेयस्कर होता है
संवादों का आधा अधूरापन
कभी कचोट देता है भीतर तक
प्रश्न खड़े होने लगते है पहाड़ से
जो रह गये है आधे अधूरे….।
संवाद की पूर्णता
मिटा देती है आंतरिक हलचल
कुछ क्षणों का संवाद शांत कर देता
व्याकुलता मन की जो चाहता है
संवाद की निरंतरता
प्रति क्षण ……..।।।।।
डॉ अनिता वर्मा
(सहआचार्य हिन्दी, राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)