अमर शहीद मंगल पाण्डेय का बलिदान दिवस: नगवा की माटी की प्रेरणा, एक नेत्र चिकित्सक की कलम से

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-डॉ सुरेश पाण्डेय

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लेखक, प्रेरक वक्ता, नेत्र चिकित्सक
सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा

भारत की माटी में कुछ तो बात है। यह वही माटी है, जिसने अपने खून से इतिहास के पन्नों को रंगा और गुलामी की जंजीरों को तोड़ने का सपना देखा। इस माटी की एक ऐसी कहानी है, जो हर भारतीय के सीने में धड़कती है—अमर शहीद मंगल पाण्डेय की कहानी। 8 अप्रैल 1857 का वह दिन, जब बैरकपुर की छावनी में एक साधारण सैनिक ने अपने असाधारण साहस से अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी। वह दिन, जब फांसी का फंदा उनके गले में पड़ा और उनका बलिदान आजादी की पहली चिंगारी बनकर धधक उठा। यह कहानी सिर्फ इतिहास की नहीं, मेरे अपने जीवन की भी सबसे गहरी प्रेरणा है।

मंगल पाण्डेय का जन्म 30 जनवरी 1831 को हुआ था, उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में। इसी नगवा गांव में 9 मार्च 1917 को मेरी दादी, स्वर्गीय श्रीमती राम श्रृंगारी देवी जी ने जन्म लिया। बचपन में उनकी गोद में बैठकर सुनी कहानियां मेरे लिए किसी अनमोल रत्न से कम नहीं थीं। उनकी कांपती आवाज में मंगल पाण्डेय की वीरता की गूंज होती थी। वे कहती थीं, “बेटा, यह माटी जिंदा है। इसने मंगल पाण्डेय को जन्म दिया, जिसने अपने खून से आजादी की पहली लकीर खींची। हमें उन सभी देशभक्तों के जीवन से सीखना है, देश के लिए अपना अपना योगदान देना है।” उनकी आंखों में चमक और गर्व देखकर मेरा छोटा सा दिल भर आता था। उनकी हर बात मेरे सीने में देशप्रेम की भावना को प्रज्वलित किए रखा।

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मेरे दादा जी, स्वर्गीय डॉ. कमता प्रसाद पाण्डेय, इस माटी के सच्चे सपूत थे। बलिया के शेर के नाम से प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री चित्तू पाण्डेय के साथ उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। लेकिन दादा जी ने नेत्र रोगियों को अँधेरे की बेड़ियों से भी मुक्त करने में अति सराहनीय कार्य किया। वर्ष 1937 में हरियाणा के भिवानी में किशनलाल जालान आई हॉस्पिटल में उन्होंने नेत्र चिकित्सा सीखी। फिर 1943 में, आजादी की लड़ाई के भंवर में, वे राजस्थान के मोहना गांव चले गए और वहां लोगों की आंखों में रोशनी बांटते रहे। उनकी यह जिंदगी मेरे लिए मिसाल बन गई। मेरे माता-पिता, श्री काश्मेश्वर प्रसाद पाण्डेय और श्रीमती माया देवी पाण्डेय, ने मुझे दादा जी के रास्ते पर चलने की हिम्मत दी। उनके आशीर्वाद से मैंने नेत्र चिकित्सक बनने का फैसला किया। यह मेरे लिए सिर्फ पेशा नहीं, बल्कि उस माटी का कर्ज चुकाने का वादा था, जिसने मुझे यह जिंदगी दी।
सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई के दिनों में 2005 में मैंने “मंगल पाण्डेय: द राइजिंग” फिल्म देखी। वह पल मेरे लिए जिंदगी बदलने वाला था। जब मंगल पाण्डेय ने अंग्रेज अफसर पर गोली चलाई, मेरा दिल जोर से धड़क उठा। मेरी आंखें भर आईं। वह सीन मेरे लिए सिर्फ फिल्म नहीं, मेरे खून की कहानी था—नगवा की माटी की पुकार, मेरे परिवार का गर्व। उस दिन मैंने फैसला किया कि मुझे अपनी जड़ों को लौटना है। विदेश में सालों काम करने के बाद मैं भारत आया और कोटा, राजस्थान में सुवि आई इंस्टीट्यूट एंड लेसिक लेजर सेंटर शुरू किया। आज यह संस्थान हजारों आंखों में रोशनी भर रही है। हर मरीज की चमकती आंखें मुझे उस चिंगारी की याद दिलाती हैं, जो अमर शहीद मंगल पाण्डेय ने जलाई थी। उनकी शहादत मेरे लिए रोशनी का पहला स्रोत है।

अपने इस दिल को छूने वाले सफर को मैंने अपनी किताबों—”An Eye for the Sky” और “Diary of an Eye Surgeon”—में उतारा है। ये किताबें मेरे करियर की कहानी से ज्यादा उस प्यार की गवाही हैं, जो मुझे नगवा की माटी और मेरे परिवार से मिला। हर शब्द में मंगल पाण्डेय की शहादत की गूंज है। 8 अप्रैल 1857 को बैरकपुर में जब उन्होंने चर्बी वाले कारतूसों के खिलाफ बगावत की, तो वह सिर्फ एक सैनिक का विद्रोह नहीं था। वह एक कौम के जागने की हुंकार थी। फांसी के फंदे पर चढ़ते वक्त उनकी आंखों में डर नहीं, बल्कि आजादी का सपना चमक रहा था। उनका बलिदान 1857 की क्रांति की नींव बना। उस दिन एक सैनिक नहीं मरा, बल्कि एक उम्मीद जन्मी—एक ऐसी उम्मीद, जिसने अंग्रेजी हुकूमत को घुटनों पर ला दिया।

नगवा की माटी मेरे लिए सब कुछ है। इसने मुझे नाम दिया, सपने दिए, और एक मकसद दिया। आज एक नेत्र चिकित्सक के रूप में जब मैं किसी की आंखों में रोशनी लौटाता हूं, तो मेरे दिल में एक सुकून भरता है। लेकिन यह सुकून उस आग के सामने छोटा है, जो अमर शहीद मंगल पाण्डेय ने अपने बलिदान से जलाई। उनकी कहानी मेरे लिए जिंदगी का सबक है। वे अकेले खड़े हुए, अंग्रेजों से भिड़ गए, और साबित कर दिया कि एक इंसान की हिम्मत पहाड़ को हिला सकती है।

आज 8 अप्रैल को अमर शहीद मंगल पाण्डेय की शहादत को याद करते हुए मेरा सीना गर्व से चौड़ा होता है, और आंखें नम हो जाती हैं। यह हमारा फर्ज है कि हम उनके रास्ते पर चलें। हम सभी के लिए यह सिर्फ देशभक्ति नहीं, बल्कि उस माटी का कर्ज है, जिसने हमें सब कुछ दिया।

हम सभी प्रयास करते चलें कि हमारी नई व भावी पीढ़ियां अमर शहीद मंगल पाण्डेय एवं सभी स्वतंत्रता सेनानियों को दिल से याद रखें। उन सभी की शहादत हमें चीख-चीखकर कहती है कि आजादी मुफ्त नहीं मिलती। यह अनगिनत मांओं के आंसुओं, बेटों के खून और सपनों की कुर्बानी से बनी है। अमर शहीद मंगल पाण्डेय का बलिदान एक जज्बा है—एक ऐसा जज्बा, जो हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है।

आइए, हम सब अमर शहीद मंगल पाण्डेय के बलिदान को नमन करें। मंगल पाण्डेय सिर्फ एक नाम नहीं,अमर शहीद हमारे गर्व का प्रतीक हैं। उन सभी देश भक्तों की चिंगारी आज भी जल रही है—हर उस सीने में, जो आजादी की कीमत समझता है। जब तक उनकी कहानी हमारे दिलों में बस्ती रहेगी, यह देश कभी नहीं झुकेगा। उनकी शहादत की यह आग कभी नहीं बुझेगी, क्योंकि यह आग हमारे खून में है, हमारी सांसों में है। अमर शहीद मंगल पाण्डेय अमर हैं, और उनकी वजह से यह देश हमेशा सिर ऊंचा रखेगा।

डॉ सुरेश पाण्डेय

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