अंतर्कलह इधर भी है तो उधर भी,बहुतेरे हैं दावेदार

पिछले चार सालों से लगातार भारतीय जनता पार्टी में उपेक्षित रही श्रीमती वसुंधरा राजे का पार्टी में अपना एक अलग अस्तित्व तो है लेकिन उनके अस्तित्व को चुनौती देने के लिए बीते सालों में पार्टी के ऐसे कई नेता सामने आ खड़े हुए हैं जो कभी श्रीमती राजे के सम्मुख अपनी उपस्थिति की झलक भर दिखाने के लिए कोशिश करते रहते थे

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-कांग्रेस में मुख्यमंत्री के दावेदारी जता रहे हैं दो नेता तो भाजपा में आधा दर्जन से कम नहीं

-कृष्ण बलदेव हाडा-

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कृष्ण बलदेव हाडा

राजस्थान में राजनीति के परिपेक्ष में यह साल इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है कि इस साल यहां विधानसभा का चुनाव होना है लेकिन खास बात यह कि राज्य के दोनों प्रमुख दल सत्तारूढ़ कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी दोनों ही अंतर्कलह से जूझ रहे है। फ़र्क यह है कि कांग्रेस का अंतर्कलह हमेशा की तरह इस बार भी सतह पर है जबकि भारतीय जनता पार्टी का अंतर्कलह पूर्ववत अभी ढका-छुपा है लेकिन तय है यह जल्दी ही सामने आयेगा। इसकी सूत्रधार राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और अब भी प्रदेश भारतीय जनता पार्टी की सबसे अधिक लोकप्रिय नेता श्रीमती वसुंधरा राजे बन सकती है क्योंकि अब वे राजनीति के जिस पड़ाव पर खड़ी है, वहां से उनके पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं बचा है।
राजस्थान की राजनीति के संदर्भ में यह बात सामने आ रही है कि सत्ता की बागडोर की खींचतान को लेकर कांग्रेस में दो धड़ों में आपसी टकराव के हालात है तो विपक्ष में रहते हुए भी भारतीय जनता पार्टी में तो करीब आधा दर्जन धड़े काम कर रहे है। विधानसभा चुनाव के बाद राजस्थान का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?, रहा यह काल्पनिक सवाल तो कांग्रेसमें सीधे-सीधे इसके दो दावेदार नजर आ रहे हैं लेकिन भारतीय जनता पार्टी में फिर वही आधे दर्जन दावेदार ताल ठोके हुए है। प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को यह ‘नेक’ सलाह देने की कोशिश की है कि वे भाजपा के अंदरूनी मामलों में झांकने की बजाय अपना खुद का घर देखें। कांग्रेस को दी गई इस सलाह के बावजूद यह भी इतना ही सच है कि राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी का अपने अपना घर ही कई भागों में बंटा है और कई सारे गुट एक साथ यहां काम कर रहे हैं जिनमें से एक गुट के अगुआ तो खुद भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ही हैं जो अकसर इस कोशिश में लगे रहते हैं कि राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे को किस तरह से वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में अप्रासंगिक या कमतर दिखाने की कोशिश की जाए।
पिछले चार सालों से लगातार भारतीय जनता पार्टी में उपेक्षित रही श्रीमती वसुंधरा राजे का पार्टी में अपना एक अलग अस्तित्व तो है लेकिन उनके अस्तित्व को चुनौती देने के लिए बीते सालों में पार्टी के ऐसे कई नेता सामने आ खड़े हुए हैं जो कभी श्रीमती राजे के सम्मुख अपनी उपस्थिति की झलक भर दिखाने के लिए कोशिश करते रहते थे। हालांकि इनमें से कुछ श्रीमती वसुंधरा राजे के नजदीक भी थे जिनमें पूर्व प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष गुलाबचंद कटारिया, श्रीमती राजे की पिछले की कैबिनेट में सशक्त मंत्री रहे राजेंद्र सिंह राठौड़ जैसे नाम शामिल है।
पिछले काफी सालों से पार्टी में अपनी अलग शख्सियत के रूप में पहचान बनाने की कोशिश कर रहे ओम प्रकाश माथुर इनसे अलग है क्योंकि वह अपने आप को सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का प्रतिनिधि मानते हैं और यह सही भी है कि डे़ढ दशक पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खेमे के ओम प्रकाश माथुर गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के प्रभारी रहे थे और उनके निर्देशानुसार ही तब तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के अन्य नेता चुनाव की रणनीति बनाकर चुनाव लड़ते थे और सफल भी होते थे। उनकी इस सफलता को पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व हमेशा सराहता आ रहा है जिनमें लाल कृष्ण आड़वाणी जैसे दिग्गज नेता भी शामिल थे और श्री माथुर की गुजरात में इसी भागीदारी की वजह से वे पिछले बीते कई सालों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नजदीकी भी है ।
वैसे ओम प्रकाश माथुर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं और जिस समय श्री माथुर को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाया गया था तब इस नियुक्ति को बड़े आश्चर्य और अप्रासंगिक रूप में देखा गया था क्योंकि जनता के बीच उनकी छवि नाम मात्र की भी नहीं थी और बाद के सालों से लेकर अब तक भी वह कभी भी जननेता नहीं रहे।
प्रधानमंत्री से उन्हें तवज्जो मिलती है,यह अलग बात हो सकती।
इसके विपरीत श्रीमती वसुंधरा राजे कभी भी नरेंद्र मोदी की पसंद की नेता नहीं रही और आज भी नहीं है। इस बात को जानते हुए भी बीते सालों में श्रीमती राजे ने कई अवसरों पर न केवल प्रधानमंत्री के कुशल नेतृत्व की जमकर सराहना की बल्कि उनकी नीतियों-रणनीतियों को सार्वजनिक मंचों पर भरपूर सम्मान देते हुये यह संदेश देने की कोशिश की कि उनके मन में नरेंद्र मोदी के प्रति कोई दुराव-छिपाव नही है लेकिन हर हफ्ते ‘मन की बात’ कहने वाले नरेंद्र मोदी अपने मन से इस बात को बहुत अच्छे से जानते हैं कि श्रीमती राजे कितने मन से उन्हें अपना नेता माननी है और
उन्हें अपना नेता मानने की बात वे कितने मन से कहती है?
दोनों ही नेता इस सच्चाई को मन से अच्छे से जानते हैं और यही वजह है कि जब कभी भी राजस्थान की बात आती है तो श्रीमती राजे को परे रखकर केंद्रीय नेतृत्व यह स्पष्ट संकेत देता रहा है कि चुनाव के बाद विधायक दल का नेता कौन होगा, यह पार्टी तय करेगी।
पार्टी किसी को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में प्रस्तुत कर चुनाव नहीं लड़ेगी। स्पष्ट संकेत है कि हालिया पार्टी नेतृत्व श्रीमती राजे को तरजीह नहीं देना चाहता लेकिन पार्टी के सामने दिक्कत यह है कि
जो नेता अपने दावेदारी के साथ सामने आ रहे हैं उनमें से एक भी नेता नेतृत्व क्षमता या लोकप्रियता के लिहाज से किसी भी सूरत में आज से श्रीमती राजे के आसपास भी नहीं फटक रहा। चाहे वे ओम प्रकाश माथुर हो, गुलाब चंद कटारिया,केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, राजेंद्र सिंह राठौड़ या कोई अन्य और। अभी इन नेताओं की दावेदारी फ़ीकी भी नहीं पड़ी है कि एक और नया नाम डा. किरोडी लाल मीणा के रूप में हाल के दिनों में उभर कर सामने आ रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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