कांग्रेस और भाजपा: खुशी की लहर और चिंता की लकीर ?

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अशोक गहलोत की फाइल फोटो

-देवेंद्र यादव-

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देवेंद्र यादव

हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक मैं जीत के बाद, इसी साल 2023 के अंत में होने वाले देश के 4 राज्यों के विधानसभा चुनाव में विभिन्न एजेंसियों की आ रही सर्वे रिपोर्ट से कांग्रेस में खुशी की लहर दिखाई दे रही है, तो वही केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के चेहरे पर चिंता की लकीर दिखाई दे रही है।
हिमाचल और कर्नाटक मैं कांग्रेस को मिली बड़ी जीत ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को एकजुट कर दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस का कार्यकर्ता इसी साल 4 राज्यों के होने वाले विधानसभा चुनाव में भी सक्रिय नजर आने लगा। कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं की सक्रियता के कारण ही देश की विभिन्न एजेंसियों के सर्वे बता रहे हैं कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ में लगातार दूसरी बार अपनी सरकार बना सकती है तो वही मध्यप्रदेश में कांग्रेस सत्ता में वापसी कर सकती है।
राजस्थान में पेच अभी भी फंसा हुआ है, मगर राजस्थान में सत्ताधारी कांग्रेस और प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी की स्थिति एक जैसी है। दोनों ही पार्टियों के भीतर नेताओं के बीच नेतृत्व को लेकर लंबे समय से जंग छिड़ी हुई है।
एक तरफ राजस्थान में कांग्रेस के नेता ताल ठोक रहे हैं कि वह राजस्थान की सत्ता में लगातार दूसरी बार जीतकर आएंगे, और लंबे समय बाद प्रदेश में इतिहास बनाएंगे।
उधर, भाजपा के नेता भी ताल ठोक रहे हैं कि 2023 के विधानसभा चुनाव में जीत कर एक बार फिर से भाजपा राजस्थान की सत्ता में वापसी करेगी।

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वसुंधरा राजे का फाइल फोटो

मजेदार बात यह है कि कांग्रेस और भाजपा के हाईकमान की नजर, एक दूसरे के उन नेताओं पर है जो नेता अपनी-अपनी पार्टियों के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी के प्रमुख दावेदार हैं।
भाजपा की नजर सचिन पायलट पर है तो वही कांग्रेस की नजर पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे पर है।
यह दोनों ही नेता अपनी-अपनी पार्टियों में नेतृत्व को लेकर राजनीतिक जंग छेड़े हुए हैं।
कांग्रेस के नेता पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट एक बार नहीं कई बार शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं, ऐसा ही नजारा भाजपा की नेता श्रीमती वसुंधरा राजे ने भी दिखाया है।
राजस्थान को लेकर सवाल यह है कि क्या भाजपा के चाणक्य राजस्थान में आकर चक्रव्यूह में फंस गए हैं, क्योंकि राजस्थान भाजपा के भीतर नेतृत्व का सवाल अब नेताओं के बीच नहीं रह कर जातियों के बीच दिखाई देने लगा है। भाजपा की तरफ से सत्ता पर राज करने वाली राजपूत जाति को पहली बार ब्राह्मण और जाटों से चुनौती मिल रही है।
प्रदेश में राजपूत जाट और ब्राह्मण तीनों जातियां अपनी अपनी जातियों से मुख्यमंत्री होने का अघोषित रूप से दावा ठोक रही हैं।
राजपूतों में मुख्यमंत्री की कुर्सी के प्रमुख दावेदार श्रीमती वसुंधरा राजे और गजेंद्र सिंह शेखावत हैं तो वही जाटों में पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया हैं तो वहीं ब्राह्मणों में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद सीपी जोशी और केंद्रीय रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव हैं।
इन दिनों राजस्थान में भाजपा के चाणक्य केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सहित भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सक्रिय हैं।
लेकिन राजस्थान में सच्चाई यह है कि भाजपा राजपूतों की अनदेखी करके सत्ता में वापसी नहीं कर सकती है। यदि भाजपा में जरा सी भी राजपूतों को लेकर अनदेखी हुई तो कांग्रेस के पास अब राजपूतों का कद्दावर नेता राज्य सरकार में मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास मौजूद है, जो नेता भाजपा से राजपूतों की नाराजगी का फायदा चुनाव में कांग्रेस को दिलवा सकता है।
भाजपा के भीतर श्रीमती वसुंधरा के बाद राजपूतों में संजीदा और मजबूत नेता केंद्रीय सिंचाई मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत हैं। गजेंद्र सिंह शेखावत पर प्रदेश भाजपा के नेताओं और बुद्धिजीवी जनता की नजर है लेकिन सवाल यह है कि हाईकमान का फैसला क्या होगा इसका अभी इंतजार करना होगा।
देवेंद्र यादव, कोटा राजस्थान
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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