केवल अध्यक्ष बदलने से दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक परंपरागत मतदाताओं की कांग्रेस में नहीं होगी वापसी!

4cd59da5 e28f 46da bab0 f6863e1c4572
फोटो सोशल मीडिया

-देवेंद्र यादव-

devendra yadav
देवेन्द्र यादव

राहुल गांधी दलित, आदिवासी, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग के अपने पारंपरिक मतदाताओं की कांग्रेस में वापसी कराने के प्रयास कर रहे हैं। लेकिन उनके प्रयासों को लेकर संशय है क्योंकि कांग्रेस के दलित, आदिवासी, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग के संगठनों के नेता भी राहुल गांधी की भावनाओं को न तो समझ रहे हैं और न गंभीर हैं। कांग्रेस के दलित, आदिवासी, ओबीसी और अल्पसंख्यक संगठन जमीन पर सक्रिय दिखाई नहीं देते हैं। सक्रिय नहीं होने से ये संगठन कमजोर हैं।
राहुल गांधी ने कांग्रेस के दलित, आदिवासी और ओबीसी संगठनों को सक्रिय और मजबूत करने की नीयत से तीनों प्रकोष्ठों के राष्ट्रीय अध्यक्षों को बदलकर नए अध्यक्ष बनाए हैं। तीनों प्रकोष्ठों के अध्यक्षों की नियुक्ति राहुल गांधी की पारखी नजर से हुई है। यदि राहुल गांधी की पारखी नजर की बात करें तो, सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी को कांग्रेस के भीतर दलित और ओबीसी के अपने संगठन को मजबूत करने के लिए नेता नजर नहीं आए। राजेंद्र पाल गौतम आम आदमी पार्टी को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए और उन्हें कांग्रेस अनुसूचित जाति विभाग का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। डॉ अनिल जय हिंद भी अन्य पार्टी से कांग्रेस में शामिल हुए थे और उन्हें ओबीसी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। सवाल यह है कि क्या दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के राष्ट्रीय अध्यक्षों को बदल देने से कांग्रेस का पारंपरिक मतदाता कांग्रेस में वापसी करेगा, जबकि जमीन पर आज भी कांग्रेस के यह तीनों संगठन कमजोर हैं। इनकी मौजूदगी कहीं नजर नहीं आती। जमीन पर इन तीनों संगठनों के जिला और प्रदेश अध्यक्षों के नाम तो गाए बगाए सुनाई देते हैं मगर जिला और प्रदेश कार्यकारिणी के पदाधिकारी कहीं नजर नहीं आते हैं। इन संगठनों की जिला और प्रदेश की बैठक और मीटिंग के समाचार सुनाई देते हैं। इससे तो यही लगता है कि कांग्रेस के ये तीनों संगठन कागजों में ही चल रहे हैं।
कांग्रेस संगठन और उसके प्रकोष्ठों के बीच सामंजस्य का अभाव भी प्रकोष्ठों के कमजोर होने का बड़ा कारण है।
जिला और प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक में कांग्रेस के प्रकोष्ठ कम ही नजर आते हैं। जिला और प्रदेश में कांग्रेस और उसके विभिन्न प्रकोष्ठों की संयुक्त मीटिंग और बैठकों का अभाव देखने को मिलता है। जिला और प्रदेश स्तर पर प्रकोष्ठ की ठीक से मॉनिटरिंग भी नहीं हो पाती है। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ने चारों विभागों का कोऑर्डिनेटर के राजू को नियुक्त कर रखा है मगर चारों प्रकोष्ठों की जिला और प्रदेश स्तर पर संयुक्त मीटिंग देखने को नहीं मिलती है। जिला कांग्रेस कमेटी और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अपने प्रकोष्ठों की कार्यकारिणियों की बैठक लेते हैं।
जबकि जिला और प्रदेश में कांग्रेस के प्रकोष्ठों पर जिला और प्रदेश अध्यक्षों का अंकुश और नियंत्रण होना चाहिए। लेकिन इसका अभाव देखा जा सकता है। राहुल गांधी को कांग्रेस के प्रकोष्ठों को जमीन पर मजबूत करने के लिए नियंत्रण जिला कांग्रेस कमेटी और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्षों के हाथ में देना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

जो एक तिहाई बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं, वे बालिग होने तक करें तो क्या करें?

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments