क्या कांग्रेस हरियाणा में 2019 की गलती दोहरा रही है!

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फोटो सोशल मीडिया से साभार
श्रीमती सोनिया गांधी ने 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की वापसी के लिए हरियाणा कांग्रेस की जिम्मेदारी सुश्री कुमारी शैलजा के हाथों में दी थी तब शैलजा ने हरियाणा में कांग्रेस संगठन को मजबूत किया। मगर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच विवाद सामने आया और कांग्रेस हरियाणा में अपनी सरकार बनाने के करीब पहुंचने के बाद भी चूक गई। क्या 2024 में भी हरियाणा में कांग्रेस 2019 को दोहराएगी क्योंकि मुख्यमंत्री की कुर्सी का विवाद 2024 में भी 2019 की तरह दिखाई दे रहा है।

-देवेंद्र यादव-

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-देवेंद्र यादव-

हरियाणा विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से पहले और बाद में कांग्रेस और राजनीतिक गलियारो में ऐसा महसूस हुआ कि हरियाणा में कांग्रेस नहीं बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की लहर है। इसे कांग्रेस की चुनाव समिति ने प्रमाणित भी किया जब हुड्डा समर्थकों को लगभग 75ः प्रतिशत टिकट दिए। कांग्रेस ने सर्वाधिक 28 के करीब टिकट जाटों को दिए, इससे लगता है कि हरियाणा में जनता के बीच सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ लहर नहीं है बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पक्ष में लहर चल रही है। क्या यह कांग्रेस हाई कमान और कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकारों का भ्रम है या फिर हुड्डा का राजनीतिक दबाव है। इससे कांग्रेस को हरियाणा विधानसभा चुनाव में फायदा होगा या फिर नुकसान होगा, शायद इस पर कांग्रेस के रणनीतिकारों ने ना चुनाव से पहले और ना चुनाव के बाद मंथन किया। हालांकि हुड्डा मय वातावरण से कांग्रेस को नुकसान होने की झलक मिल गई थी जब कांग्रेस की पांच बार से सांसद सुश्री कुमारी शैलजा की नाराजगी दिखाई दी। कुमारी शैलजा दलित है और कांग्रेस के भीतर महिला और दलितों का बड़ा राजनीतिक चेहरा है। हरियाणा में कांग्रेस का वास्तविक और परंपरिक वोटर दलित था और उस वोट बैंक की नुमाइंदगी दशकों से कुमारी शैलजा और शैलजा से पहले उनके पिता दलवीर सिंह करते आए हैं। हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस की मजबूती का कारण दलित मतदाताओं का कांग्रेस के प्रति एक मुश्त मतदान होना भी है। श्रीमती सोनिया गांधी ने 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की वापसी के लिए हरियाणा कांग्रेस की जिम्मेदारी सुश्री कुमारी शैलजा के हाथों में दी थी तब शैलजा ने हरियाणा में कांग्रेस संगठन को मजबूत किया। मगर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच विवाद सामने आया और कांग्रेस हरियाणा में अपनी सरकार बनाने के करीब पहुंचने के बाद भी चूक गई। क्या 2024 में भी हरियाणा में कांग्रेस 2019 को दोहराएगी क्योंकि मुख्यमंत्री की कुर्सी का विवाद 2024 में भी 2019 की तरह दिखाई दे रहा है।
राजनीतिक गलियारे में खबर तो यह भी सुनाई दे रही है कि हरियाणा को लेकर कांग्रेस के रणनीतिकारों ने जो चुनावी रणनीति बनाई है उससे राहुल गांधी खुश नहीं है क्योंकि राहुल गांधी के बोलने के बाद भी हरियाणा में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से चुनावी गठबंधन नहीं किया और टिकटो का बटवारा भी ठीक से नहीं किया। एक ही नेता को हरियाणा में शक्तिशाली बना दिया। राजनीतिक गलियारो में तो यह चर्चा है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के अति आत्मविश्वास के कारण हरियाणा में आम आदमी पार्टी से गठबंधन नहीं हो पाया।
यदि हरियाणा में कांग्रेस की वापसी होती है तो राहुल गांधी और कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकारों को यह फार्मूला बनाना चाहिए क्योंकि चुनाव से पहले और चुनाव के बाद हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा मय वातावरण बनाया गया और जाटों को 28 विधानसभा सीटों पर उतारा गया है जो भूपेंद्र सिंह हुड्डा के ही समर्थक समझ जा रहे हैं यदि उनमें से 20 जाट नेता भी चुनाव जीतते हैं तो मान लेना चाहिए कि हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की लहर है और यदि बड़ी संख्या में जाट नहीं जीतते हैं तो मान लेना कि हरियाणा में हुड्डा लहर नहीं थी। बल्कि हुड्डा का पार्टी हाई कमान पर राजनीतिक दबाव था। यदि गैर जाट नेता जाटों से अधिक चुनाव जीतते हैं तो कांग्रेस को दलित चेहरा कुमारी शैलजा पर भरोसा करना चाहिए। उन्हें राज्य की सत्ता की कमान देनी चाहिए। कुमारी शैलजा कांग्रेस और गांधी परिवार के प्रति वफादार नेता हैं। शैलजा का प्रभाव देश के दलितों पर भी है और कांग्रेस में मौजूदा वक्त में कोई भी बड़ा दलित चेहरा सामने नहीं है, जिसके चेहरे पर भरोसा कर दलित एकजुट होकर कांग्रेस को मतदान करें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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