
-कृष्ण बलदेव हाडा-

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)
कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे के कार्यभार ग्रहण करने के बाद एक बार फिर से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कल से गुजरात में विधानसभा के प्रचार की बागडोर सौंपी जाने के बाद पार्टी आलाकमान ने राज्य के सचिन पायलट खेमे को स्पष्ट संकेत दे दिया है कि पार्टी नेतृत्व का अगले विधानसभा चुनाव तक अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाकर उनके स्थान पर सचिन पायलट को यह जिम्मेदारी सौंपी जाने का कोई इरादा नहीं है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को एक बार फिर गुजरात विधानसभा चुनाव के प्रचार की जिम्मेदारी सौंपा जाना इसलिए भी अहम है कि गुजरात के प्रदेश प्रभारी पद से डॉ. रघु शर्मा के कल इस्तीफ़ा दिये जाने के बाद उसे स्वीकार कर लिया गया है लेकिन चूंकि दिसंबर में 182 सदस्य गुजरात विधानसभा में चुनाव होना प्रस्तावित है इसलिए मल्लिकार्जुन खड़गे कि कांग्रेस के नया प्रमुख बनने के बाद सांगठनिक ढांचे में बदलाव के मौजूदा दौर के बीच भी अशोक गहलोत को गुजरात के वरिष्ठ कांग्रेस पर्यवेक्षक के रूप में पद पर न केवल बरकरार रखा गया है बल्कि उनका कल से गुजरात राज्य का चुनावी दौरा भी तय कर दिया गया है। अशोक गहलोत अगले चार दिनों में 31 अक्टूबर तक गुजरात के दौरे पर रहेंगे और इस दौरान छह जिलों में न केवल जनसभाओं को संबोधित करेंगे बल्कि सघन रूप से जनसंपर्क भी करेंगे। श्री गहलोत का यह दौरा इस दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा दूसरे चरण में गुजरात राज्य में प्रवेश करने वाली है और अपने गुजरात प्रवास के दौरान श्री गहलोत बनासकांठा जिले में भारत जोड़ो पदयात्रा में शामिल होंगे।
अभयदान हासिल करने में कामयाब
राजस्थान में पिछले महीने चले राजनीतिक घटनाक्रम के बाद तत्कालीन प्रदेश प्रभारी अजय माकन और पूर्व मुख्यमंत्री सचिन पायलट के भरसक प्रयासों के बावजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस आलाकमान से अभयदान हासिल करने में कामयाब रहे थे क्योंकि गुजरात में दिसंबर माह में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं और ऎसे में पार्टी नेतृत्व श्री गहलोत को छोड़कर बर्रे के छत्ते में हाथ डालने की स्थिति में नहीं है। वैसे भी श्री गहलोत पिछले विधानसभा चुनाव में गुजरात में अपनी अहम उपादेयता साबित कर चुके हैं। पिछले चुनाव में बरसों बाद कांग्रेसी गुजरात जैसे भारतीय जनता पार्टी के प्रभुत्व वाले राज्य में सरकार बनाते-बनाते बची थी और वह भी तब जब दो दशक से भी अधिक समय तक गुजरात के तीन बार मुख्यमंत्री रहने के बाद नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री और अमित शाह गृहमंत्री थे। विगत चुनाव में 182 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस 80 सीटों पर जीत का परचम लहराने में सफल रही थी,जबकि दो-तिहाई बहुमत हासिल करती रही भारतीय जनता पार्टी 99 सीटों पर सिमट गई थी और तीन सीटें अन्य दलों के खाते में गई थी। इतनी अधिक सीटों पर कांग्रेस का जीतना इसलिए भी महत्वपूर्ण था कि तब चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जातीय-सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। इसके बावजूद कांग्रेसी अप्रत्याशित सफलता हासिल करने में कामयाब रही थी और तब से अशोक गहलोत को ‘गुजरात के राजनीतिक मामलों का विशेषज्ञ’ होने का तमगा हासिल है। बाद में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल को प्रतिष्ठा पूर्व चुनाव में राज्यसभा में भेजकर अशोक गहलोत ने एक बार फिर से अपने राजनीतिक कौशल का परिचय दिया था।