
-देवेंद्र यादव-

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी आखिर कब तक मेडल लेते रहेंगे। यह सवाल राहुल गांधी को लेकर लंबे समय से कांग्रेस के भीतर बना हुआ है। क्या राहुल गांधी पहले भी अकेले थे और आज भी अकेले हैं। कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी के अलावा बाकी नेताओं को केवल पद चाहिए। संघर्ष करके मेडल नहीं। मलाईदार पद नेताओं के लिए और मेडल राहुल गांधी के लिए, क्या कभी राहुल गांधी ने इस पर गहन मंथन किया है। क्या राहुल गांधी 32 मेडल मिलने के बाद इस पर गंभीरता से मंथन करेंगे कि मेडल उन्हें ही क्यों मिल रहे हैं। कांग्रेस के बाकी के नेता पद लेने के बाद मेडल की दौड़ में क्यों नहीं हैं।
राहुल गांधी 15 मई को बिहार दौरे पर थे जहां उन्होंने दरभंगा में दलित छात्रों के साथ अंबेडकर भवन में जाकर शिक्षा न्याय संवाद किया। बिहार सरकार ने राहुल गांधी के खिलाफ दो मुकदमे दर्ज किए। राहुल गांधी ने पत्रकारों के सवाल के जवाब में कहा कि मुकदमे उनके लिए मेडल हैं। पहले से 30 मुकदमे हैं। अब 32 हो गए। सवाल यह है कि राहुल गांधी मेडलों की गिनती के साथ उन नेताओं की गिनती कब करेंगे जो वर्षों से कांग्रेस संगठन में बड़े पदों पर कुंडली मारकर बैठे हुए हैं। जो केवल राहुल गांधी को ज्ञान बांटते हैं।
यदि बिहार की बात करें तो इस वर्ष राहुल गांधी ने बिहार के चार दौरे किए हैं। उन्होंने बिहार कांग्रेस में तीन बड़े बदलाव किए। राहुल गांधी को अपना चौथा दौरा शुरू करने से पहले, यह आकलन करना चाहिए था कि उन्होंने जो तीन बड़े बदलाव किए हैं उससे बिहार कांग्रेस में क्या बदलाव आया। क्या इससे कांग्रेस मजबूत हुई या पदों पर कुंडली मारकर बैठे नेता सक्रिय हुए। बिहार कांग्रेस के नेता आज भी कांग्रेस से ज्यादा चर्चा राजद और उसके नेता तेजस्वी यादव की ही करते हैं। जबकि राहुल गांधी की बिहार में सक्रियता के बाद पदों पर कुंडली मारकर बैठे नेताओं को केवल और केवल राहुल गांधी और कांग्रेस की चर्चा करनी चाहिए !
यदि बिहार में राहुल गांधी और कांग्रेस की ईमानदारी और वफादारी से यदि कोई चर्चा करता है तो वह है पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव। जो 2024 से ही बिहार की सड़कों पर उतरकर कहते हुए दिखाई देते हैं कि यदि भाजपा सरकार को कोई हरा सकता है तो वह कांग्रेस और राहुल गांधी। 14 मई को जब प्रशासन ने राहुल गांधी को दरभंगा में छात्रों से संवाद करने की परमिशन देने से मना किया तब पप्पू यादव ने प्रशासन का विरोध किया और दलित छात्रों से आह्वान किया कि वह राहुल गांधी के प्रोग्राम को सफल बनाएं। इसके बाद जब राहुल गांधी पर मुकदमा दर्ज हुआ तब पप्पू यादव के कार्यकर्ता इसके विरोध में सड़क पर उतरे और बिहार के गृहमंत्री उपमुख्यमंत्री का पुतला फूंका।
सवाल यह है कि क्या प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और कन्हैया कुमार को राहुल गांधी पर हुए मुकदमे के विरोध में नहीं उतरना चाहिए था। इस पर राहुल गांधी को गंभीर मंथन करना होगा और विचार करना होगा कि आखिर कब तक वह अकेले मेडल लेते रहेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)