यूपी से सबक क्यों नहीं लेते नीतीश कुमार !

नीतीश कुमार की माने तो बिहार की भौगोलिक परिस्थितियाँ कारखाने लगाने लायक नहीं है क्योंकि बिहार समुद्र तट के किनारे नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या उत्तर प्रदेश और पंजाब तथा हरियाणा समुद्र तट के किनारे हैं जहां की सरकारें बेरोजगारी दूर करने के लिए फैक्ट्रियां लगाने का प्रयास करती हैं।

samadhan yatra
पटना में समाधान यात्रा की फोटो प्रदर्शनी का अवलोकन करते नीतीश कुमार। फोटो नीतीश कुमार के ट्विटर हैंडल से साभार

-विष्णुदेव मंडल-

विष्णु देव मंडल

दशकों तक आर्थिक रुप से बदहाल रहा उत्तरप्रदेश अब तरक्की के द्वार चढ़ने के लिए अग्रसर हैं। उद्योगपति वहां निवेश करने को उत्सुक हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी में निवेश के लिए पिछले दिनों 40 देशों से 4000 डेलिगेट्स को लखनऊ में निवेश के लिए आमंत्रित किया था जिनमें अधिकांश उद्योगपतियों ने उत्तर प्रदेश में निवेश करने का इच्छा जताई। इस आयोजन के तहत यूपी में 32 लाख करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट आने की संभावना है। यदि यूपी में ऐसा चमत्कार होता है तो निश्चित ही यूपी समेत देश की बेरोजगारी में कमी आएगी।
दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य बिहार जिसकी भौगोलिक परिस्थिति समान है,बोलचाल और भाषा भी कमोबेश मिलती-जुलती है। वहां विकास के बजाय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव एवं अन्य राजनीतिक दल जातीय जनगणना कराने में व्यस्त हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मानना है कि बिहार की तरक्की के लिए जातीय जनगणना जरूरी है जिससे यह पता चलेगा कि राज्य में कौन जाति कितनी तादाद में है। उसी के तहत जातियों को सत्ता में हिस्सेदारी दी जाएगी।
बहरहाल नीतीश कुमार ने गुरुवार को अपनी समाधान यात्रा का समापन कर दिया हैं। बिहार में हत्या, जातीय हिंसा,जमीनी विवाद के लिए मारपीट,डकैती, छिनैती, गैंगवार, लूटपाट आदि घटनाओं बढोतरी हुई है। बिहार में बढ़ रहे अपराधों कीे खबर देखने से यह प्रतीत होने लगा है कि बिहार ने एक बार फिर जंगलराज के तरफ वापसी की है,
यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है की बिहार में 32 सालों से लालू प्रसाद यादव (15 साल ) और नीतीश कुमार (18 साल ) सत्ता में रहे हैं। इन दोनों के कार्यकाल में 2005 से 2015 तक नीतीश कुमार ने बिहार के विकास के लिए अर्थात बुनियादी सुविधा बहाल करने के लिए मुकम्मल प्रयास किए थे। इनमें सड़क,बिजली,पानी एवं कानून व्यवस्था भी मुकम्मल थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में नीतीश कुमार ने अपने सहयोगी दलों के साथ चुनाव जीतने के बाद कुछ वर्षों में जनादेश के खिलाफ गठबंधन बदलते रहे और मुख्यमंत्री बने रहे। इस बीच नीतीश कुमार की अधिकांश महत्वाकांक्षी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती रही। उनकी बिहार में शराबबंदी पूर्णरूपेण भी विफल है वहीं नल जल योजनाएं के तहत अधिकारियों और पंचायत प्रतिनिधियों ने जमकर उगाही की। बिहार में रोजगार के लिए नीतीश कुमार ने किसी तरह का प्रयास नहीं किए।

अपना राजनीतिक रसूख कायम करने के लिए जो पहले हरिजन थे उसे दलित और महादलित बनाया जबकि पिछड़ा अति पिछड़ा में बांटकर गुट बंदी कर दी। अब आलम यह है कि पंचायत में प्रतिनिधित्व के लिए जातीगत विद्वेष बढा है और विकास पीछे छूट गया। बिहार के करोड़ों युवा रोजगार के लिए अन्य राज्यों में पलायन को मजबूर है।
नीतीश कुमार की माने तो बिहार की भौगोलिक परिस्थितियाँ कारखाने लगाने लायक नहीं है क्योंकि बिहार समुद्र तट के किनारे नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या उत्तर प्रदेश और पंजाब तथा हरियाणा समुद्र तट के किनारे हैं जहां की सरकारें बेरोजगारी दूर करने के लिए फैक्ट्रियां लगाने का प्रयास करती हैं। लेकिन बिहार के राजनीतिक दल सामाजिक बंटवारे के लिए अपनी राजनीति चमकाने के लिए जातीय उन्माद फैलाने के लिए जातीय जनगणना कराने पर आमादा है ताकि जात जात में लोग बंट जाए और उनकी सत्ता कायम रहे।

(लेखक बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं)

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