
– उधर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और समर्थकों को रायपुर में ही विधानसभा चुनाव से पहले तक मिल सकती है अंतिम क्लीनचिट
-कृष्ण बलदेव हाडा-

राजस्थान में कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नाराज खेमे के लोग छत्तीसगढ़ प्रांत की राजधानी रायपुर में होने वाले 85 वें कांग्रेस अधिवेशन से काफी उम्मीदें लगाए बैठे हैं।
उनकी सबसे बड़ी उम्मीद यह है कि इस अधिवेशन के दौरान या अधिवेशन के बाद राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है और अशोक गहलोत की जगह सचिन पायलट की मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी हो सकती है साथ ही यह घोषणा भी की जा सकती है कि अगला विधानसभा चुनाव सचिन पायलट के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा।
राजस्थान में इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इसी अधिवेशन के जरिए सचिन पायलट खेमे के अंतिम उम्मीदें बाकी बची है वरना यदि इस अधिवेशन में भी कोई फैसला नहीं हो पाया तो प्रतीक्षा और प्रतीक्षा ही उनके खाते में आने वाली जबकि इसके विपरीत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का खेमा उम्मीद ही नहीं बल्कि आश्वस्त बैठा है कि इस अधिवेशन के बाद मुख्यमंत्री के रूप में कम से कम इस कार्यकाल के लिए तो अशोक गहलोत को सत्ता में बने रहने के लिए अंतिम क्लीनचिट मिल जाएगी। वैसे इस अधिवेशन में भाग लेने के लिए दोनों ही नेता अशोक गहलोत और सचिन पायलट के अधिवेशन शुरू होने से एक दिन पहले रायपुर पहुंचने की उम्मीद है। उस समय मौजूद रहने वाले पार्टी केंद्रीय नेताओं से मुलाकात का सिलसिला कर अपने-अपने पक्ष की बात को आगे बढ़ा सके।
यह अधिवेशन 24 फरवरी से 26 फरवरी तक तीन दिन रायपुर में होना है और काफी सालों बाद ऐसा अवसर आएगा जब कांग्रेस का कोई अधिवेशन उस समय होगा जब पार्टी का अध्यक्ष गैर गांधी परिवार से है। हाल ही में हुए पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये थे जिन्होंने दूसरे वरिष्ठ नेता केरल के शशि थरूर को भारी अंतर से हराया था। वैसे पार्टी अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे को पर्दे के पीछे से गांधी परिवार का पूरा समर्थन हासिल है। हालांकि उन्होंने ऐसा कभी खुलकर तो नहीं कहा लेकिन कभी शशि थरूर के पक्ष में खड़े भी नजर नहीं आए। वैसे भी मलिकार्जुन खड़गे प्रारंभ श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी से नजदीकी रिश्ता बनाए रखें रहे हैं।
रायपुर अधिवेशन के जरिए कुछ मिलने की उम्मीद में हाल के दिनों में सचिन पायलट के खेमे के कुछ विधायक मुखर हुए हैं और इस बात की भरपूर वकालत की है कि अगला विधानसभा चुनाव अशोक गहलोत की जगह सचिन पायलट के युवा नेतृत्व में लड़ा जाये तब ही प्रदेश में लगातार दूसरी बार कांग्रेस सरकार बनने की उम्मीद है वरना नहीं। खुलकर अपनी ऐसी राय जाहिर करने वाले पायलट समर्थकों में खिलाड़ी लाल बैरवा और वेद प्रकाश सोलंकी जैसे विधायक हैं। इनमें से रामखिलाड़ी बैरवा उन पायलट समर्थकों में से जो पिछले डेढ़-दो सालों से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ जबरदस्त मुखर हुए हैं और सचिन पायलट की वकालत करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते।
यह जनाब पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खास सिपहसालार थे और जब पहली बार तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट पार्टी से बगावत करके मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी ठोकते हुए हरियाणा की भारतीय जनता पार्टी सरकार का आतिथ्य स्वीकार कर मानेसर में पड़ाव डाल बैठे, तब इन्होंने न केवल सचिन पायलट की जमकर आलोचना की बल्कि जयपुर में ही विरोधी खेमे के साथ रहकर पार्टी के प्रति अपनी फरमाबरदार दिखाई। उम्मीद थी कि जब पार्टी वापस पटरी पर लौटेगी तो अशोक गहलोत कैबिनेट नहीं तो कम से कम राज्यमंत्री तो बना ही देंगे लेकिन ऐसा बाद में हुआ नहीं तो इनके तेवर भी बगावती हो गए और यह जनाब सचिन पायलट के खेमे में चलें गये और जब बीते साल सितम्बर महिने में तत्कालीन प्रदेश प्रभारी अजय माकन से शह हासिल कर सचिन पायलट नेएक बार फिर से मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी ठोकी और इसके जवाब में अशोक गहलोत समर्थकों ने समानांतर विधायक दल की बैठक कर गहलोत को ही अपना नेता माना, तब यह पायलट के मजमें में थे और आज भी है। तब से खिलाड़ी लाल बैरवा लगातार सचिन के पक्ष में अशोक गहलोत को ‘आज नहीं तो कल’ हटाए जाने संबंधी बयान अकसर अखबारों में शाया होते रहते हैं या इस दावे के साथ टीवी पर चेहरा नुमाया होता रहता है। बैरवा तो सचिन पायलट को राहुल गांधी की तरह पार्टी की ऐसैट्स नहीं मानते बल्कि उन्हें तो ‘फिक्स डिपाजिट’ का दर्जा देते हैं और यहां तक कहते हैं कि अगला विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री बना कर उनके नेतृत्व में ही लड़ा जाना चाहिए।
बैरवा कहते है कि सचिन को मुख्यमंत्री बनाने की मांग उनकी नहीं हर कार्यकर्ता की है क्योंकि अगले चुनाव में जब टीम अच्छी होगी तो चुनाव में भी परेशानी नहीं होगी। बैरवा तो इतने उतावले हैं कि सचिन की ताजपोशी के लिए कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाने की भी प्रतीक्षा करने को तैयार नहीं है और कहते हैं कि बैठते तो होती रहेगी,पहले सचिन को मुख्यमंत्री बना दो क्योंकि उन्हें लगता है कि विधायक दल में अशोक गहलोत का बहुमत हो सकता है।
वैसे कुछ ‘मिलने-मिलाने’ की उम्मीद में बैरवा,सोलंकी और गिर्राज सिंह मलिंगा समेत पार्टी के लगभग आधा दर्जन विधायक और अब भी अधिक उम्मीद पाने की आशा में राजेंद्र सिंह गुढ्ढा और रमेश मीणा जैसे मंत्री भी
ही नहीं बल्कि इन सब के मुखिया सचिन पायलट भी अब तो रायपुर अधिवेशन से ‘बहुत कुछ मिलने’ की अपनी अंतिम आस में अशोक गहलोत और उनके निकटतम सहयोगियों कोटा के विधायक और नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल समेत महेश जोशी, धर्मेंद्र सिंह राठौड़ के खिलाफ खुलकर मुखर होते हुए नजर आ रहे हैं। दो दिन पहले ही उन्होंने एक अंग्रेजी समाचार एजेंसी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने पार्टी नेताओं से यह उम्मीद जताई है कि अब ‘अनुशासनहीनता’ करने वाले नेताओं के खिलाफ कार्यवाही करने में बहुत ज्यादा देरी हो रही है। यह देरी क्यों हो रही है?, यह उन्हें समझ में नहीं आता।
सचिन पायलट चाहते हैं की अनुशासन समिति उन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करें जिन्होंने 24 सितंबर को विधायक दल के समानांतर बैठक बुलाकर अशोक गहलोत को भी अपना नेता मान लिया था ताकि अब राज्य सरकार के अंतिम चंद महीनों के कार्यकाल में वे अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाकर खुद मुख्यमंत्री पद को सुशोभित कर सके। पायलट समर्थक विधायकों में खिलाड़ी लाल बैरवा तो इतनी जल्दबाजी में है कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने से पहले विधायक दल की बैठक तक बुलाने के हक में नही है। वे कहते हैं कि-” पहले पायलट को मुख्यमंत्री बना दो, विधायक दल की बैठक तो बाद में होती रहेगी।” इससे स्पष्ट लगता है कि बैरवा जैसे विधायकों को पूरी आशंका है कि पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के बारे में कोई फैसला करने से पहले विधायक दल की बैठक बुला कर राय ली तो उसमें पायलट को समर्थन मिल पाना मुश्किल है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)