
ममता बनर्जी की बड़ी सियासी चुनौती, भाजपा को भी होगी मुश्किल
-द ओपिनियन-
मेघालय की 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए भी 27 फरवरी को मतदान होगा और इस बार यहां का चुनाव परिदृश्य बदला हुआ नजर आ रहा है। पूर्वोत्तर में अपनी ताकत बढाने में जुटी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस मेघालय में बड़ी चुनावी चुनौती पेश करने की तैयारी में है। कांग्रेस के बूते अपना आधार बढ़ाने वाली तृणमूल कांग्रेस इस बारे सारे सत्ता समीकरण बदलने की तैयारी में जुटी है। सत्तारूढ गठबंधन में दरारों की अटकलें शुरू हो गई हैं। राज्य में नेशनल पीपुल्स पार्टी के कोनराड संगमा मुख्यमंत्री हैं। भाजपा भी संगमा सरकार में भागीदार है। दोनों ने चुनाव पूर्व गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। हालांकि 21 सीटें जीतकर सबसे बडी पार्टी के रूप में कांग्रेस उभरी थी लेकिन वह सरकार नहीं बना सकी। संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी ने भाजपा व अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ सरकार बनाई। कभी पूर्वोत्तर में सबसे शक्तिशाली पार्टी रही कांग्रेस अपने विधायकों को बांधकर नहीं रख सकी और वे टूटकर अलग होते चले गए और व्यवहारिक रूप से कांग्रेस की जगह तृणमूल कांग्रेस ने ले ली। कांग्रेस के विधायक अलग&अलग दलों में गए लेकिन ज्यादातर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए। अब तृणमूल ही मुख्य विपक्षी दल है। कांग्रेस से आए विधायकों के बूते तृणमूल अब विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी में है और उसकी नजर राज्य में सत्ता में आने पर लगी है। तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी राज्य का दौरा कर चुकी हैं। वह उसी दिन मेघालय के दौरे पर थी जिस दिन राज्य में चुनावों की घोषणा हुई थी। कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका नवम्बर 2021 में लगा जब मुकुल संगमा के नेतृत्व में उसके 17 में से 12 विधायक तृणमूल कांग्रेस में चले गए। कांग्रेस ने मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी गंवा दिया।
एनसीपी अकेले लड़ेगी चुनाव
पिछली बार भाजपा के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन के साथ मैदान में उतरी नेशनल पीपुल्स पार्टी ने घोषणा की है कि वह राज्य की सभी सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ेगी। पिछली बार एनपीपी ने 17 और भाजपा ने 12 सीटें जीतकर बाद में अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाई थी लेकिन इस बार दोनों ही दलों को तृणमूल की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। मेघालय विधानसभा में 60 सीट हैं इनमें से 55 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। मेघालय की 85 फीसदी से ज्यादा आबादी जनजातियों की है।