
– विवेक कुमार मिश्र-
(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
देखते हुए
बाबू , थोड़ा बाहर भी देख लिया करें
देश दुनिया को देखते हुए संसार में आते हैं
संसार में होना और संसार में आना एक ही नहीं होता
संसार में होने के लिए संसारी ही होना पड़ता
कम से कम इतना तो होना ही पड़ता है कि
अपने आदमी को सामने रख आदमी की तरह बात कर सकें
इस तरह आदमी से बात करते आदमी हो जाये
थोड़ी इधर की थोड़ी उधर की देख लिया करें
थोड़ा आदमी की तरह आदमी होते दुनिया को देख लें
इस तरह थोड़ा बाहर भी निकल लिया करें
केवल अपने भीतर ही झांकना ठीक नहीं होता
कभी कभार इधर उधर देख लेना चाहिए
आदमी को जानने के लिए
थोड़ा घूमना चाहिए
जबतक दुनिया को नहीं देखते
दुनिया कहां सामने आती
कहां अपने को भी जान पाते
संसार को एक दो दिन में नहीं समझ सकते
एक संसार वह भी होता जिसे अपने होने में जीते हैं
संसार को संसार की तरह जीते हुए जी पाते हैं
और संसार है कि ….
संस्कृति के रंग में अपना पूरा अर्थ खोलता है ।

















