
ग़ज़ल
शकूर अनवर
ज़िंदगी में आन होना चाहिए।
आन पर क़ुर्बान होना चाहिए।।
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मंज़िलें आसान होती जायेंगी।
हौसला चट्टान होना चाहिए।।
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अहले दानिश*ने तो भटका ही दिया।
कुछ हमें नादान होना चाहिए।।
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रोशनी की आरज़ू क़ायम रहे।
घर में रोशनदान होना चाहिए।।
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फ़ायदा ही फ़ायदा मुझसे हुआ।
अब तेरा नुक़सान होना चाहिए।।
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सब्र की तलक़ीन*आख़िर कब तलक।
ज़ुल्म से घमसान होना चाहिए।।
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पार क्या जाऍं नदी में कुछ नहीं।
कोई तो तूफ़ान होना चाहिए।।
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सब तरह के फूल बस खिलते रहें।
ऐसा हिंदुस्तान होना चाहिए।।
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नामा ए ऐमाल* “अनवर” देखलो।
साथ में सामान होना चाहिए।।
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अहले दानिश* बुद्धिजीवी
तलक़ीन* नसीहत
नामा ए ऐमाल* कर्मों का लेखा जोखा